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________________ tortortortortortortortortortex शिलाओ छे, अने आ शिलाओनां नाम अनुक्रमे १ नन्दा, २ भद्रा, ३ जया, ४ विजया अने ५ पूर्णा के अने आनी स्थापना अनुक्रमे १ आग्रेयी,* २ नैती, ३ वायवी, ४ ऐशानी, ए दिशाओमां अने मध्यमां करवी. मध्यमा प्रतिष्ठाप्य पूर्णा शिला उपर निम्न मुख वालो कूर्म (काचयो) अने त्रण रेखा वाली श्रेष्ठ कोडी, आ बे वस्तुओ स्थापन करवी. कूर्म बनतां सुधो सोनानो बनाववो, के जेथी वास्तु भूमिमां शल्य : दोष होय तो ते टली जाय, कूर्मने पंचामृत वडे अभिषेक करीने पछी शिला उपर स्थापवो, लग्ननो समय आवे त्यारे उपर्युक्त क्रम प्रमाणे ज बधी शिलाओ प्रतिष्ठित करवी अने उपर वासक्षेप नाखीने शिलाओनी प्रतिष्ठा करवी. मध्यशिला उपर कूर्म स्थापन करतां “ॐ ह्रीं श्री कूर्म तिष्ठ तिष्ट देवगृहं धारय धारय स्वाहा” आ मंत्र बोली उपर वासक्षेप नाखवो, कूर्म प्रतिष्ठा-देवगृह, प्रासाद, रथशाला, गृह आदि दरेक वास्तुना निर्माणमां थवी जीइये, जेमां कूर्म प्रतिष्ठा करवी होय ते वास्तुनुं नाम मंत्र मध्ये बोलवू, कूर्म प्रतिष्ठित करी वासक्षेप कर्या पछी सोभाग्य १, सुरभि २, प्रवचन ३, कृतांजलि ४, अने गरुड ५, आ पांच मुद्राओ देखाडवी, पछी इरियावही पडिक्कमवा पूर्वक पूर्वोक्त विधि प्रमाणे संपूर्ण चैत्यवंदन करवू. आ चैत्य वंदनमा छट्ठी स्तुति कह्या पछी-श्री प्रतिष्ठा देवतायै । * विष्णु संहितामा आग्नेयी दिशानो अर्थ गृहद्वारनो जमणो भाग, आवो कयों छे, जेम के" पुनः कृष्टेष्टकाधान, कुर्याद् द्वारे तु कल्पिते । द्वारस्य दक्षिणे भागे, कर्तव्या प्रथमेष्टिका ॥" For Private & Personal Use Only आ. दि.२७ नाalandinipnal G ww.jainelibrary.org --
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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