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________________ आचारदिनकर ॥१५४॥ PROGRESPRECAR ॥ चैत्य प्रतिष्ठामा भूमि पूजन खातविधि-शिला न्यास प्राथमिक मुख्य अंगो के प्रासादा वीतरागस्य, परमध्ये सुखावहाः । गुरुकल्याण कर्तार-श्चतुर्दिक्ष प्रकल्पयेत् ॥ जे भूमि उपर चैत्य बनाव_ होय ते भूमिनी परीक्षा करवी. शुद्ध-शल्य वगरनी वृद्धि करनारी-नक्की करी वृषभ चक्र-सुती जागती वि. जोई शुभ मुहूर्त नक्की करेल खुणामां खात करवू. प्रथम विधि पूर्वक स्नात्र भणावी-अक्षत मिश्रित पुष्पादि लई पंचरत्नादि युक्त कुंभ स्थापन करवो. संक्षिप्त-ग्रह पूजन दिक्पालपूजन अष्टमंगल-करवा-पूर्वादि दिशामा अर्घ्य आपवा-दिकपालना नाम पूर्वक....आगच्छ २ अर्घ्य प्रतीच्छ २ स्वाहा. आरती मंगल दीवो शांति कणश करी. शांति जलनो भूमिमां छंटकाव करे-पूर्ण कणश लई समस्त भूमिमां प्रदक्षिणा आपे. जे पुरुष खात करवाना होय तेने वज्र पंजर-अंगरक्षा करे भूमिमां मध्यभागे उभो रही वास्तु पुरुषy आहवाहन करे ते नीचे प्रमाणे ॐ वास्तोष पतये ब्रह्मणे नमः। इह आगच्छ २ स्वाहा-तिष्ठ २ स्वाहा-पूजां प्रतीच्छ २ स्वाहा ।.... चन्दनं समर्पयामि स्वाहा-पूष्पाणि-धूप-दीपं-वस्त्रं-फलं, नैवेद्यं अक्षतादिकं-समर्पयामि स्वाहा-ऐम दरेक वस्तु समर्प-हाथ जोडी प्रार्थना करे. ॥१५४॥ Jain Education interne For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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