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वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु, भूमिशय्यारत प्रभो, मच्चैत्यं सम्पूर्ण समृद्धं कुरु २ स्वाहा ॥
वास्तु-विसर्जन करे-विसर विसर पुनरा गमनाय स्वाहा. खात-करवानी वस्तु-साधनो-(कोदाली वि०) शुद्ध करी जे स्थाने खोदवान होय त्यां खोदवानीमूहर्ते शरुआत करे. पछी केसर चंदन छांटे वाजिंत्र वगाडे यथा शक्ति प्रभावना करे. खाडो पाणी नीकणे त्यां सुधी अथवा :कठण पत्थर नीकणे त्यां सुधी खोदवो. शुभ मुहूर्ते शीला स्थापन नीचे प्रमाणे | विधि पूर्वक करे.
कूर्म प्रतिष्ठा विधिः (प्रतिष्ठा कल्पोक्त) चैत्यकर्म विधावत्र, कूर्मो भूमौ निधीयते । यत्पौठनिहितं चैत्यं, चिरस्थायि भवेद ध्रुवम् ॥९॥ भा०टी०-चैत्य कार्यना निर्माणमां नीचे भूमिमां कर्म स्थापित करी तेनी पीठ उपर चैत्य बनाववाथी ते स्थिर अने चिरस्थायी बने छे..
सामग्री-सोनानो काचबो १। पंचरत्ननी पोटली माटीना कलशिया ५। कलशियानां ढांकणां ५। उपशिला-शिलाओनां संपुट ५ । सात धान्य कोरां मुहि ५ । सातधान्यना बाकला थाली १। सात्रपूजानो सामान । पंचामृतनो कलशियो १ । पुष्प सर्व जातां । फल सूकां-लीलां। डाभनी शली ५। ५। जलनो कलश १। कूर्मने ओढाववानुं वस्त्र-हाथ १। सिंहासन १। पंचतीर्थीप्रतिमा १ । आरीसो १।
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