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________________ भाचारदिनकरः प्राप्तिः । इति यतिश्राद्धकरणीयमागाढं सौभाग्यकल्पवृक्षतपः॥३॥ ॥ अथ दमयन्तीतपः। दमयन्त्या प्रति ४ दमयन्तीतप आगाढं अन्येषामपि जिनानामेवं विधिः आं २१ पा. त. पा. आं| 0 | 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 ऋषभस्य विभाग:२ तपोविधिः 2-% % |जिनमाचाम्लान्येकविंशतिः। कृतानि सन्ततान्येवं दमयन्तीतपो हि तत् ॥१॥ दमयन्त्या नलवियुक्तया कृतं तपः दमयन्तीतपः । तत्र जिनंजिनंप्रति विंशतिविंशतिराचाम्लानि एकैकं शासनदेवतायाः एवं निर|न्तरतया विधीयन्ते । शक्त्यनुसारेण एकैकजिनस्याचाम्लपूरणे पारणकान्यपि भवन्ति सांप्रतिककालापे क्षया । यन्त्रकन्यासः । उद्यापने सर्वसंख्यया चतुरुत्तरा पञ्चशती फलपक्कान्नजातिमुद्राढौकनं बृहत्लात्रविधिपूर्वकं आचाम्लानां सर्वसंख्यया चतुरुत्तरा पञ्चशती। संघवात्सल्यं संघपूजा च । एतत्फलं आपद्विगमः। इति श्राद्धकरणीयमनागाढं दमयन्तीतपः॥४॥ ॥ अथायतिजनकतपः । कार्य द्वात्रिंशदाचाम्लैः स्वसत्वेन ५ आयतिजनकतप आगाढं । तत्र द्वात्रिंशदाचाम्लानि निरन्तराणि एकश्रेण्या करणीयानि । आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आं % % % % ___Jain Education ine ral For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600002
Book TitleAchar Dinkar Part-2
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherKesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai
Publication Year1923
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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