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तपो भवेत्॥३॥ अत्र उपवासाः पञ्चसप्तत्युत्तरं शतं १७५ पारणकदिनानि पञ्चविंशतिः २५ यत्रकन्यासः। उद्यापनं भद्रवत् । एतत्फलं वांछितप्राप्तिः । इति यतिश्राद्धकरणीयमागाढं भद्रोत्तरतपः॥ २१॥ ॥ अथ सर्वतोभद्रतपः। आद्याः पञ्चषडश्वनागनवभिर्दिगशंभुभिः श्रेणिका नागैर्नन्दककुपशिवाशररसैरश्चर्द्वितीया
च सा। रुदैर्वाणरसाश्वना२२ सर्वतोभद्रतप आगाढं उ० ३९२ पा०४९ सर्व०४४१
गनवभिर्दिग्भिस्तृतीयाभउ ५ पा उ ६ पा उ पा उब पा | उ ९| पा | उ१० पा | उ.१ पा वेत्तुर्या सप्तगजैश्च नन्ददउ ८ पाउ ९ पा उ१० पा उ१७ पा | उ ५ पा | उ ६ पा | उ ७ पा शभिः श्रीकण्ठबाणै रसैः उ११ पाउ ५ पा उ ६ पा उ0 पाउ ८ पाउ ९ पा | उ१० पा
॥१॥ काष्ठारुद्रशरै रसैहउ0 पा उ ८ पा उ ९ पा उ१० पा । उ8 पा | उ ५ पाउ ६ पा |
यगजैनन्दान्वितैः पञ्चमी |उ0 पाउ१ पा उ ५ पा उ६ पाउ पा उ6 पा | उ ९ पा
| षष्ठी षट्तुरगेभनन्दद-15 उ६ पा उ0 पाउ4 पा उ९ पा उ0 पा | उ११ पाउ ५ पा |
शभिः श्रीकण्ठबाणैः परं । .पा उ.पा उ.१ पा उ ५ पा उ६ पा
नन्दाशाशिववाणषट्यगजैः पूर्णावलिः सप्तमी ते वै पारणकान्तरा निगदिता नित्योपवासा बुधैः ॥ २॥ सर्वतो भद्रकारित्वात्सर्वतोभद्रं । एवं सर्वतोभद्रतपसि उपवासानां द्विनवत्युत्तरा त्रिशती ३९२ पारणकदिनान्येकोनपञ्चाशत् ४९ ।
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