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आचारदिनकरः
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॥३५२॥
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464-22-2567-%
२० महाभद्रतप आगाढं उपवासाः १९६ पारणानि ४९ सर्व २४५ पश्चषट्सप्तभूयुग्मत्रिचतुष्टयोः ॥ ४ ॥ एवं विभागः२ उपा उ२ पा उ३ पा | उ ४ पा उ५ पा | उ ६ पा उपा | संपूर्यते सप्तश्रेणिभिर्मध्यपारणैः। महाभद्रं तपोविधिः उ४ पा | उ ५ पा उपा उ.पा उ.पा उ२ पा उ३ पा | तपः सप्तप्रस्तारपरिवारितं ॥५॥ महाभद्र-15
| पा पा उ३ पा उ४ पा | उ ५ पा | कारित्वान्महाभद्रं । यन्त्रकन्यासः। अत्रोपउ ३ पा उ पा उ५ पा उ६ पा उ.पा उ. पा उ२ पा | वासाः षण्णवत्युत्तरं शतं १९६ पारणकउ.पा उ.पा उ२ पा उ३ पा उ ४ पा
दिनान्येकोनपञ्चाशत् ४९। उद्यापने बृहपा उ३ पा उ पा उ ५ पा उ६ पा उ.पा उ.पा | स्नानविधिना जिनपूजा संघवात्सल्यं संपा उपा उ.पा उ1 पा उ२ पा | उ३ पा उ. पा | घपूजा च । एतत्फलं सर्वविघ्नविनाशः पु२१ भद्रोत्तरतप आगाढं दिन २००
ण्यप्राप्तिः । इति यतिश्राद्धकरणीयमागाढं महाभद्रतपः ॥२०॥ उ६ पा | उ पा | उ८ पा | उ ९ पा |॥ अथ भद्रोत्तरतपः। भद्रेण कल्याणेन उत्तरं भद्रोत्तरं । आ. पा उ6 पा उ९ पा उ५ पा उ ६/ पा चश्रेणी पञ्चषभिः सप्ताष्टनवभिस्तथा। द्वितीयायां च सप्ताउ५ पा
प्टनववाणरसैरपि ॥ १ ॥ तृतीयायां नन्दवाणषट्सप्ताष्टभिरुउ ६ पा उ.पा उ.पा उ९ पाउ५ पा त्तमैः । चतुर्थ्या रसससाष्टनववाणमितैः क्रमात् ॥२॥ पञ्च-5॥३५२॥
पा उ९ पा उ५ पा उ६ पा उ.पा म्यामटनन्देषुषट्सप्तभिरुपोषणः । निरन्तरंपारणाभिभेद्रोत्तर
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