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________________ भगवान् बुद्ध के सन्देश मानव,को एकता के सूत्र में पिरोकर विश्व शान्ति स्थापित धर्म है। स्व. बालगंगाधर तिलक के मतानुसार बौद्ध. करने में समर्थ होंगे। धर्म कोई रूढ़िवादी धर्म नहीं, प्रत्युत 'बुद्ध शासन' किन्तु आज भारतीयों के रग-रग में साम्प्रदायिक चरित्रगठन तथा उच्च सभ्यता का एक स्वाभाविक निर्झर विद्वेष व्याप्त हो रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप हमारी है। बुद्धकालीन भारत का वर्णन करते हुये, सत्य और कठिन तपस्या से अर्जित स्वाधीनता मूल्यहीन एवं प्रगति अहिंसा के अनन्य भक्त महात्मा गांधी ने अपने 'यङ्ग असम्भव हो गयी है। इस संकटमय परिस्थिति में एक- इण्डिया' (१९२१) में लिखा था-. मात्र बौद्ध धर्म ही मानव समाज की अज्ञानता दूर कर, "भारत जिस काल में सब प्रकार से उन्नत हुआ था, नैतिक एवं सामाजिक भावना में आमूल परिवर्तन तथा वह बौद्ध-कालीन युग में ही। भारत का सर्वाधिक सीमा प्रेम का प्रचार कर, उसे परित्राण कर सकता है। बौद्ध विस्तार उसी समय हुआ था। प्रेम के वशीभूत होकर धर्म के अष्टाङ्गिक मार्ग का अनुसरण करने पर हम अपने ब्रह्मग एवं शूद्र एक साथ हिल मिल कर रहते थे । ब्राह्मण चरित्र को सुधार कर एवं अपने चरित्र का गठन कर, की घृणा एवं शूद के द्वेष का नामोनिशान न था। भ्रातृअपने को पतन के गर्त में गिरने से बचा सकते हैं। प्रेम से प्लावित होकर दोनों दलों ने पृथ्वी की शेष सीमा आदर्श-चरित्र और व्ययहार के लिये अन्य धर्मों में जो पर्यन्त इस भ्रातृप्रेम का प्रचार किया था।" मार्ग बतलाये गये हैं, वे तो इस धर्म में भी पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी अपनी कुछ विशेषतायें हैं। विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गत १९३४ ई. में इसका कार्य-कारण का सिद्धान्त समस्त संसार के प्राणियों लंका में कहा था "मेरे अन्तःकरण में दृढ़ धारणा बनी हुई के दुःख निवारण में अद्वितीय है। सर्व साधारण एवं है कि समस्त मानव एक हैं और यह वही विचार है जिसे सर्व वर्ग तथा सर्व जाति के लिये बौद्ध-धर्म एक बहुमूल्य भगवान् बुद्ध ने विश्व को दिया था।" भगवान बुद्ध के सन्देश श्री एन० एन० घोष, एम० ए० भगवान् बुद्ध ने आज से शताब्दियों पूर्व मानव मात्र एक दूसरे के रक्त का प्यासा हो रहा है। भगवान बुद्ध ने के दुःख को दूर करने के विचार से सारनाथ में धर्मचक्र अपने उपदेशों में इन्हीं कष्टों को दूर करने के लिए सहज का प्रवर्तन किया था। उनके उपदेशों का एकमात्र उद्देश्य उपाय बतलाये थे। उनके अमर सन्देश किसी स्थानथा--विश्व में प्रेम का प्रचार कर शान्ति स्थापित करना। विशेष के लिए नहीं, प्रत्युत समस्त विश्व के कल्याण के वर्तमान समाज में जाति एवं वंश के मिथ्या अभिमान ने लिये थे और आज भी उनका प्रयोग विश्व शांति के लिये परस्पर घृणा की वृद्धि में पूर्ण सहायता की है। परस्सर किया जा सकता है। अविश्वास विचार वैषम्य और अधिकार लिप्सा की भगवान बुद्ध के महान् अनुयायी सम्राट अशोक ने भावना ने आज अपना विकराल रूप धारण किया है। अपने धर्मानुशासन को एक विशाल शिला-स्तम्भ पर 'आज मानव को मानव का शोषण करने में ही सुख की खुदवा कर सारनाथ में गड़वा दिया था। उसके शीर्ष पर अनुभूति हो रही है। एक दूसरे को धोखा देकर क्षणिक बनी हुई चार सिंहों की मूर्तियाँ संसार की चारों दिशाओं सुख प्राप्त करने की भावना इतनी प्रबल हो गयी है कि में धर्म प्रचार के उद्देश्य की प्रतीक हैं। भारत सरकार ने मानव ने आज दानव का रूप धारण कर लिया है। वह इसे राज्य चिह्न स्वीकार कर विश्व-बन्धुत्व, शान्ति एवं.
SR No.545672
Book TitleDharmdoot 1950 Varsh 15 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmrakshit Bhikshu Tripitakacharya
PublisherDharmalok Mahabodhi Sabha
Publication Year1950
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Dharmdoot, & India
File Size10 MB
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