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बौद्धधर्मसे ही मानव-कल्याण
श्रीबलाइचन्दवोस एम० ए०
विश्व आज युग-सन्धिकाल से गुजर रहा है। मानव फलस्वरूप हमारी सांस्कृतिक एवं भौतिक प्रगति संचलित इस विश्वव्यापी युद्ध एवं इसकी प्रतिक्रिया- ठप पड़ गयी है। महात्मा गाँधी ने कहा है कि मक शक्तियों ने आज मानव समाज में भयंकर उथल- "अर्थ की उपासना एवं वाक्य इन्द्रजाल ही आज पुथल मचा रखा है। इतना ही नहीं, मानव ने आज की सभ्यता का प्रधान अंग है।" चित्त की वह शान्ति, मात्स्यन्याय का जामा पहन कर ताण्डव नृत्य करना वह शान्तिमय जीवन, आनन्द और विश्व-बन्धुत्व का आरम्भ किया है। अपने को सभ्य कहने वाले मानव ने आदर्श, जिनने विभिन्न धर्मावलम्बी समाज को भी एकता प्राक्कालीन विशृङलता को भी मातकर रखा है। अशांति और नैतिकता के सूत्र में बाँध रखा था, आज वे लुप्त हो ने आज जो भयंकर रूप धारण किया है, उससे विश्व गये हैं। इस कठिन समस्या ने विश्व को यह सोचने को शान्ति की भित्ति तक हिल गयी है और इस पृथ्वी पर बाध्य किया कि किस तरह मानव के नैतिक जीवन चरित्र मानव का अस्तित्व भी रह सकेगा ऐसा विश्वास नहीं में आमूल परिवर्तन कर 'तथागत' प्रदर्शित मैत्री, करुणा होता। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि हमारे चारों तरफ पाश. और उपेक्षा के मार्ग का अवलम्बन कर, इस विश्व में विक प्रवत्तियाँ दिनोंदिन बलवान होती जा रही हैं। चिर शान्ति स्थापित करने में समर्थ हो सकेंगे-भारत क्षमता और शक्ति के दुर्व्यवहार के फलस्वरूप उत्तरोत्तर और प्राची ने विश्व को ढाई हजार वर्ष पहले ही वह मार्ग बढ़ते हुए भयानक अविश्वास, परस्पर विषम विद्वेष, दिखलाया था। घृणा आदि का अन्त, ध्वंसात्मक युद्ध, रक्तपात, हत्या, इस भयंकर परिस्थिति में भगवान बुद्ध के उपदेशों बलात्कार आदि के रूप में हो रहा है। यह स्पष्ट ही मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा द्वारा एकमात्र भारत ही देखने में आता है कि मानव समाज अपनी प्राचीन विश्व को परित्राण के पथ पर ले चलने में समर्थ हो सकता संस्कृति, सभ्यता सत्य-अहिंसा तथा विश्व-बन्धुत्व के है। अतएव, हमलोगों का प्रथम कर्तव्य होता है कि हम महान् आदर्श से कोसों दूर भागता जा रहा है। हम अपने दुःखों ( राग-द्वेष, अविश्वास, लोभ इत्यादि) के लोगों के व्यक्तिगत भौतिक सुख प्राप्त करने की भावना मूल कारणों का पता लगावें । हम देखते हैं कि हमलोगों ने हमें अपने नैतिक एवं धार्मिक मार्ग से विचलित कर के चारों तरफ अवांछित ज्ञानहीन एवं अनुत्तरदायी जीवन दिया है। युग-युगान्तर में भारत के इस प्राङ्गण में कभी का पूर्ण प्रसार है। अपने सत् कर्तव्य से हटकर हमलोग अहिंसा और सत्य की वाणी ध्वनित हुयी थी, हम लोग अपने जीवन में असह्य यातना सह रहे हैं। यही कारण है सर्वथा भूल गये हैं। एक अनुत्तरदायी उछङ्खता ने हम कि आज हमारा भस्तित्व भी खतरे में दिखायी पड़ता है। लोगों के धार्मिक संगठन की भित्ति तक ढाह दी है। जो हमलोगों में मैत्री, मुदिता, करुणा, उपेक्षा-इन ब्रह्म आदर्श-नीति हम लोगों के सामाज में एकता और हमारे विहारों का सर्वथा अभाव हो गया है और यही कारण है नैतिक जीवन की सृष्टि करने में समर्थ हुयी थी, उसके कि हम दिनोंदिन विनाश-पथ पर तीव्र गति से अग्रसर
मूलन के फलस्वरूप हम लोग दुर्दशा के आसीम गर्त होते जा रहे हैं। यदि हम इन उच्च विचारों से युक्त में गिर चुके हैं। जीवित रहने और दूसरों को जीवित मानवीय सत्ता की यथार्थ चर्चा करें तो अवश्यमेव मानवरहने देने का आदर्श हम लोग भूल चुके हैं। समाज का वृथा नाश न कर हम 'प्रकृत प्रदत्त रन