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मूलगंध कुटी विहार के भित्ति-चित्र से ऐसे कर्म हैं जो ताजे दूध की भाति तुरन्त फल नहीं सचित्त परियोदपनं, एतं बुद्धान सासनं ॥ .. देते. वे भस्म से ढंकी भाग की भाँति दग्ध करते हुए सारे पाप (कर्मों) का न करना, पुण्यों का सञ्चय मूर्ख लोगों का पीछा करते हैं । अस्तु
करना, अपने चित्त को परिशुद्ध करना-यह बुद्धों की - सबपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा । शिक्षा है।
- कर्म
जनक
उपस्तम्भक
उपपीड़क
उपघातक
(१) जनक (२) गक
उपस्तम्भक उपदिक
आसन (सामीप्य)
उपच आची
गरुक
करव
आचीर्ण
कर्तृत्व
दृष्टधर्म वेदनीय
उपपद्य वेदनीय
अपरापर्य वेदनीय
अहोसिकर्म
(५) अकुशल
अकुशल
कामावचर कुशाल
कामावचर कुशल
रूपावचर कुशल
अरूपावचर कुशल
मूलगंध कुटी विहार के भित्ति-चित्र
श्री बी० एन० सरस्वती मूलगंध कुटी विहार की भव्य दीवारों पर जापान के चित्रकारी में पाते हैं। कलाकार नोसु ने भी प्रायः उसी
कार श्री कोसेत्सु नोसु ने अपनी ओजस्विनी आधार पर अपने सजीव भित्ति-चित्र की कल्पना की। तूलिका सर्वप्रथम १९३१ ई. में चलायी। चार वर्ष के इसमें उन्हें पूर्ण सफलता मिली है। अनवरत परिश्रम के पश्चात् उनका यह कार्य सफल हुआ। किसी भी राष्ट्र की कला उसके इतिहास की परि. आज सारनाथ की पवित्र भूमि में जो कोई मानव के चायिका होती है । इतिहास के पृष्ठों में हमें केवल लिखित अन्धतम हृदय में ज्ञान की ज्योति दिखाने वाले भगवान् सामग्री मिलती है, परन्तु कला के द्वारा राष्ट्र इतिहास के बुद्ध पर प्रेमाञ्जलि अर्पित करने आता है, वह अवश्य ही सजीव चित्र देखने को मिलते हैं। इसी प्रेरणा से प्रेरित इस भित्ति-चित्र को देखकर उस अमर कलाकार की तथा भगवान् की प्रीत में निमग्न होकर ही कलाकार नोस प्रशंसा किये बिना नहीं जाता। श्री नोसु के इस कला ने भगवान् बुद्ध के जीवन इतिहास को अपने चित्रों में सौष्टव ने सारनाथ की महत्ता में सक्रिय योग दिया है। अभिव्यक्त किया है जिस कलात्मक दृश्य से शताब्दियों के आज दर्शक यदि भगवान् बुद्ध का दर्शन कर अपने को इतिहास को हम थोड़े समय में समझ लेते हैं। भगवान् धन्य समझते हैं, तो इस असाधारण कला का निरीक्षण बुद्ध के जीवन का यह कलात्मक इतिहास हमारे हृदय में भी उन्हें कम हर्षित तथा कम आकर्षित नहीं करता। किताब के पदों पर लिखित इतिहास के अपेक्षाकृत
बौद्धकालीन कला का चरम विकास हम अजन्ता की अधिक प्रभाव डालता है। ये संजीव चित्र आज कई