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________________ * स्वतन्त्रता * . इसको जिधर जाहे घुमाती है और जब स्वतन्त्रता की इस कसौटी पर उन चाहे घुमाती है। .. महापुरुषों को परख कर देख लीजिये जो : जवानी में अपने रिश्तेदारों को छोड़कर १ जेलखाने का वार्डर स्वतन्त्र है कैदी भागे । कोई अपनी पत्नी को सोता छोड़ के लिए । पर वह तो जेलर के हुक्म का कर चल दिया, कोई अाँसों से उसके बन्दा है और वह खुद ही कौन आजाद कपड़े भिगो कर चल दिया, कोई किसी है. १ वह किसी और का बन्दा है। तरह और कोई किसी तरह । खुलासा यह कि बन्धन का यह सिलसिला एक जगह हमने देखा ऊँट के सिर कहीं खत्म नहीं होता। अगर कोई ढीठ पर एक लकड़ी बांधी गई थी उस लकड़ी बनकर अपने को स्वतन्त्र मान ही ले तो के अगले सिरे पर नीम की एक हरी शाख अपनी आदतों की बन्दिश से कहाँ बंधी हुई थी ऊँट उसे खाने के लिये जायगा?. चलता था दिन भर चलता था पर क्या अब स्वतन्त्रता एक छलावा बन जाती वह हाथ पाती थी। पर इस तरकीब से है। दौड़े जानो उसे पाने के लिए । वह तेली ऊंट से सरसों पिलवा लेता था हाथ आने से रही। एक बार मैं बारह और ऊँट को हांकने के लिए उसे वर्ष की उम्र में स्वतत्र होने के लिये घर · श्रादमी नहीं बिठाना पड़ता था। प्रकृति से निकल भागा चौबिस घन्टे स्वतन्त्र रहा देवी ने अपने आप को बेहद चलाक और वह मेरी स्वतन्त्रता यह थी कि अपने समझने वाले आदमी से जी तोड़ काम एक दोस्त के मकान की ऊपर की मंजिल ___ करने के लिये उसमें स्वतन्त्रता की इच्छा के एक कमरे में बंध गया । बाहर निक पैदा कर दी है। बस वह चालाक श्रादमी लता तो बाप या भाई इँद लेते और इसी को पाने के लिये ज़मीन आसमान मेरी स्वतन्त्रता छिन जाती। रही खाने एक करता रहता है और कोल्हू के ऊंट पीने की बात सो घर पर अम्मां से मांगना की तरह प्रकृति देवी का तेल पेरने के पड़ता था यहाँ दोस्त या दोस्त की मां सिवाय कुछ नहीं कर पाता । जिस तरह . से । अा हाहा इस बन्धन मै खुश था कंट को तेल पेल चुकने के बाद स्वतन्त्रता का रसे पी रहा था और उस वह हरी शाख खाने को दे दी जाती है रस में जो जोर की मिठास थी उसका चाहे और चारा भी मिल जाता है और ऊंट मुझे पता न हो पर मेरे अन्तर आत्मा समझता है कि यह सब उसकी दौड़ धूप को पता था कि वह मिठास उस दुख का का फल है वैसे ही श्रादमी प्रकृति देवी निचोड़ है जो मेरे मां बाप और भाई की नौकरी पूरी तरह बजा कर ऐसा बहन को मेरे विछोह से हो रहा था। मालम करने लगता है कि उसने स्वतंत्रता : अब स्वतन्त्रता का अर्थ हुश्रा.अपनी पाली और प्रकृति देवी की दी हुई प्रसिद्ध मर्जी का बन्धन । .. . को भी वह यही समझता है कि वह उसी
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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