SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वतन्त्रता ( लेखक - महात्मा श्री भगवान दीन जी) स्वतन्त्रता क्या है ? यह भी कोई सवाल है । स्वतन्त्रता को सब प्राणी समझते हैं, वह प्राणी ही नहीं, जो स्वतन्त्रता को न • समझे । सब प्राणी बोलते नहीं, कुछ ऐसे हैं जो बोल लेते हैं, पर हम सफ़ेद कागज़ - को काला करने वाले उनकी बात नहीं समझते, अगर समझते होते तो हम यह जान जाते कि पशु पक्षी 'किसे स्वतन्त्रता मानते हैं ?' हमारे लिये सिर्फ श्रादमी बोलता है, इसलिये हर आदमी, 'स्वतन्त्रता क्या है ?' इसका जवाब दे सकता है । जवाब तरह-तरह के होंगे । ध्यान से देखने पर सब ऐसे मालूम होंगे मानो सब के सब जवाब, मोतियों की तरह, एक डोरे में पिरोए हुये हैं । ऋषियों, ज्ञानियों, महापुरुषों ने 'स्वतन्त्रता क्या है ? इसके उत्तर में जो कुछ कहा है वह ही कब एक है ? हम सब इन जवाबों को पढ़ते हैं, श्रानन्द लेते हैं और गहरे जायं तो एक अर्थ भी पा लेते हैं । धर्म एक, पर धर्म तो दसियों हैं, पांच है की गिनती तो बड़े धर्मों में है, फिर भी अकादमी यह कहते मिलते हैं, 'सत्र धर्म एक हैं, यानी धर्म एक है।' धर्मों की तरह स्वतन्त्रता एक है। स्वतन्त्रता एक है, यह बात शायद यो मन में बैठ सके - स्वतन्त्रता की तड़प सबमें एक सी है । स्वतन्त्रता का अनुभव सबमें एक सा है । स्वतन्त्रता कहने को बाहरी पर है एकदम भीतरी । स्वतन्त्रता किसी तरह नहीं समझाई जा सकती । सत्य कब किसकी समझ में आया ? पर क्या किसी ने उसके समझने की कोशिश छोड़ी ! ईश्वर कब किसकी समझ में आया ? पर क्या दुनियाँ उसे खोजते खोजते कभी थकी ? स्वतन्त्रता मिले या न मिले हम उसके लिये जाने देते रहेंगे, तरह-तरह दुख भोगते रहेंगे और सब तरह का त्याग करते रहेंगे । स्वतन्त्रता समझ में आये या न आये, हम यह कहते रहेंगे कि हम यह ख़ूब समझते हैं कि स्वतन्त्रता क्या चीज़ है और उधर स्वतन्त्रता को समझने की कोशिश भी करते रहेंगे । गाय रस्सी तुड़ाती है । रस्सी मज़बूत होने से अगर न टूट सके और गाय, अपनी ताकत से खूंटा उखाड़ ले और भाग खड़ी हो तो क्या वह यह नहीं समझ बैठती कि वह स्वतन्त्र हो गई । और क्या वह अपनी ऊंची गरदन उठाकर और अपनी बड़ी-बड़ी श्रांखे मटकाकर खूटों से बंधी और गायों को श्रभिमान के साथ
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy