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स्वतंत्रता दिवस [ लेखक-श्री अनन्त प्रसाद जैन B. Sc. (Eng.) लोकपाल" ] हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस आता है मंत्री हैं। हम उन्हें अपना सबसे और चला जाता है। हम भी संसार प्यारा नेता मानते हैं—पर क्या नेहरू । की देखा देखी खुशियाँ मना लेते हमारी तकलीफों को जरा भी कम हैं। पर क्या हम सचमुच खुश हैं ? करने में समर्थ हुए ? हाँ, कुछ मोटे. हमने स्वतंत्रता पाई और उसके पाँच मोटे नेता नामधारी लोगों ने अवश्य वर्ष पूरे हो गए। इन पाँच वर्षों में हमारे नाम में हमारा प्रति निधित्व क्या क्या हुआ किसी से छिपा नहीं करके अपने अरमानों की पूर्ति कीहै। गरीयों ने समझा रखा था कि पर हमारे अरमान तो भ्रष्टाचार अब उन्हें कुछ आराम की साँस लेने और पावरपौलिटिक्स की दो तर्फी का मौका हाथ लगेगा। लेकिन उम्मीद दीवारों पर टक्कर खा-खाकर चूरउम्मीद ही रह गई। गरीबों की मौत चूर हो गए। हम स्वतंत्रता दिवस सभी जगह है। हमारी स्वतंत्रा ने की खुशियां मनाते हैं पर हमारा दिल भी धनियों के ही खजाने भरे। भीतर भीतर रोता रहता है। यह भी ___ क्या महात्मा गांधी ने इसी गरीबी की एक विडम्बना ही है । यदि स्वतंत्रता के लिए अपनी बलि दे गरीब ऐसी हालत में आवाज उठावे दी? क्या हमारे स्वर्गीय नेताओं ने तो वह देश द्रोही कहा जाता है पर ऐसी ही स्वतंत्रता का आवाहन किया गरीवों के खून पसीने से निकले धन था और अपना सर्वस्व चढ़ाया था। से मोटे होने वाले हर तरह के प्रत्यक्ष क्या जवाहर लाल ने इसी के लिए या प्रछन्न “व्यापार करने वाले देश गाँव-गाँव की खाक छानी थी ? क्या भक्त कहे जाते हैं। हमारे नौजवान शहीदों ने इसी के भारत में अविद्या और गरीबी लिए अपनी कुर्वानियाँ की ? क्या दोनों की प्रधानता है उस पर भी १८५७ से लेकर अब तक हम इसी धमाधता एवं जाति पांत अथवा लिए अपना रक्तदान करते रहे ? क्या छुआछूत वगैरह ने लोगों को इस १६४२ में होने वाले हत्याकांड में लायक नहीं रख छोड़ा है कि कोई विदेशियों की गोलियों के शिकार राय कभी दे सकें । अन्तर्राष्ट्रीय राजहमारे नौनिहाल इसीलिग हुए थे? - नीतिक चक्रचाल भी स्वतंत्र राय _____ अाज भी नेहरू हमारे प्रधान व्यक्त करने की स्वतंत्रता एकदम ही