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________________ क यिता तुम फिर जग जाओ एक बार । सन इकइस की याद करो जब ममक उठी थी अपनी टोली। छोड छोड़ स्कूल तुम्हीं ने, खेली थी प्राणों की होली। कर असहयोग भर दी जेलें भारत आज़ाद बनाने को । बहुतों ने दे दी प्राणाहुति मानव-मर्याद बचाने को। घबराकर गोरे काँप उठे सन् ब्यालिस जैसे रेल तार ॥१॥ तुम फिर जग जाओ एक बार ! तुमको जग के जग रङ्ग मञ्च पर; वह अभिनय करना होगा। कातर पीड़ित के अञ्चल पर; तन मन धन सब धरना होगा। पीता ही होगा काल कूट अब प्रलयङ्कर बन जाने को। कवच पहन ले अस्त्र शस्त्र प्रस्तुत हो तुम रण जाने को। बर्बरता से खुल कर कह दो मेरा करुणा से अतुल प्यार ॥२॥ तुम फिर जग जाओ एक बार ! तुमको जलते अंगारों से; आलिंगन करना ही होगा। यश कीर्ति छोड़ने के पहले दुख चुम्बन करना ही होगा। लड़ जाओ तुम निर्भय होकर आँरी पानी तूफानों से । डग मग होती हो नाव अगर; खेलो अपने बलिदानों से । सागर ज्वारों तुम्हें चुनौती, डुबाना तुम, मैं करता पार ॥३॥ तुम फिर जग जाओ एक बार ! झंझा अपना वेग बखेरे, घन चपला को लेकर टूटे । वज्रपात हो महा प्रलय हो नीचे ज्वाला का गिरि फूटे। फिर भी जय बोल बढ़ो आगे कर लिये अहिंसा धारों को। दो हिंसा का सर तोड़ कुचल उन भीषण अत्याचारों को । मानवता का शंख बजा दो गूंज जाय अग जग पुकार ॥४॥ तुम फिर जग जाओ एक बार ! इस युग में भी अब पीड़ित जग सुखमय त्यौहार मनाने को। है बाट तुम्हारी देख रहा कल्पना प्रबल कर पाने को । यदि बर्बरता के साथ कहीं; कायरता नाश नहीं पाये। तो हो सकता है शोषित जग तुम पर विश्वास नहीं लाये। वैषम्य मिटाकर दुनियाँ से समता को शीघ्र वरो वीरो। मृगराजों को मृग शावक या मृग को मृग राज करो वीरो। शोषण उत्पीड़न कृन्दन से कर मुक्त मही भर दो बहार ॥५॥ ___तुम फिर जग जाओ एक बार !
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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