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________________ ॐ अहिंसा-वाणी के सु० बा०-हाँ, भाई अब भी ! तुम अपने को स्वतंत्र कहते हो स्वतंत्र ! पर... कुमार-पर, पर क्या ? क्या मैं अब भी परतंत्र हूँ? सु० बा० - भय्या ! तुमने नगर स्वतंत्र किया, वासना के बन्धन में न पड़े। किन्तु, फिर भी परतंत्र ! कुमार-कैसे भग्नि ? सु० बा०-इस जगत-प्रवाह में कौन स्वतंत्र हैं ? कौन भव-जल में कर्म-उर्मि साँकलों से बद्ध नहीं ? कौन संसार-सागर की लहरों के थपेड़े नहीं खाता ? कौन सुख-दुख नहीं भोगता ? कौन जन्म-मरण के चक्कर नहीं लगाता ? फिर भी तुम अपने को स्वतंत्र कहते हो स्वतंत्र ! ___ तुम कैसे स्वतंत्र ? कुमार-तो स्वतंत्र होने का कुछ उपाय भी है ? सु० बा-हाँ! कुमार-वह क्या ? सु० बा० –'सम्यक दर्शन, चारित्राणि मोक्ष मार्गः।' कुमार-समझा नहीं बहिन ? सु० बा०-सच्चे देव, गुरु, शास्त्र में श्रद्धा रखना, सच्चा ज्ञान प्राप्त करना, र सच्चरित्र बनना ही तो मोक्ष का मार्ग है; सच्ची स्वतंत्रता की सीढ़ी है। कुमार-तो सत्-असत् का विवेक होना आवश्यक है। सु० बा-हाँ भाई आवश्यक ही नहीं परमावश्यक ! इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्री मदाचार्यशिरोमणि उमास्वाँति मुनीश्वर के 'तत्वार्थ सूत्र' का अध्ययन-मनन करो और उसे जीवन में उतारो। कुमार-(दृढ़ निश्चय से ) मैं अवश्य ही इस मार्ग पर चलूँगा। सच्ची स्वतंत्रता पाऊँगा । भव-वन्धन को का,गा। ... सु. बा.-मुझे प्रसन्नता है कि तुम बाजः सच्ची स्वतंत्रता का मूलमन्त्र __ समझे। मैं अब जाती हूँ............ - कुमार-अच्छा तो अभिवादन. ......! - [सुमति माई का प्रस्थान ।] कुमार-तो सच्ची स्वतंत्रता है जगधन्धन से मुक्ति पाने में और है-'सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः' इसे अपनाने में! [ वाद्य-वादन होते हुए पटाक्षेप]
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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