SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) युग-प्रभात नवीन जागरण हुआ नया नया विहान हो । प्रभात की नई किरण नवीन रश्मियाँ लिए, समूल नष्ट तोम का निशान राष्ट्र के लिए, कि साधना मिली खिली सुपंखुड़ी प्रभा लिए, कि भावना प्रभात की स्वतन्त्र देश के लिए, स्वतन्त्र देश राष्ट्र आज पूज्य हो महान् हो । नवीन जागरण हिमाद्रि श्रंग से शेष ज्योति की दिशा खिली, उफान सिन्धु से नई विभा मिली; प्रभा मिली, कि छार छार दासता स्वदेश की हुई हुई कि भेद भाव से खिली यह पंखुड़ी गिरी गिरी स्वदेश की नई दिशा स्वतन्त्र हो स्वतन्त्र हो । नवीन जागरण "" अशेष शीष दान से कि कोटि कोटि जान से, किमान से औ भान से गरीब की पुकार से, खुले कपाट आज राज देश के सुराज के, कि अघर्य भी चुका, बिकी गरीब देश की हया; परन्तु देश की पतन - निशा नितान्त म्लान हो । नवीन जागरण " मिली दिशा निशा हिली महार्घ्य पर पड़ी पड़ी कि आज लाल लाल को निहारती है मां खड़ी मिला था रक्तकरण मगर मिला न लाल का निशां कि हार, हार रह गई मिली न प्रीति की दिशा कि मातृप्रेम का नया प्रमाण आज दान हो । नवीन जागरण बुड्ढे बच्चे नर-नारी सत्र जन-गन-मन अधिनायक की जय, सुजलां सुफलां शस्य श्यामलां विजयी विश्व तिरंगे की जय, सब कुछ छिन सकता है हमसे बन्दे मातरम् नहीं छिनेगा, मरते दम तक 'जय भारत', 'जय गांधी', 'जय- माता' निकलेगा, पर स्वतन्त्रता की सांसों ने एक और करवट बदली, गांधी पथदर्शक उद्धारक बापू की बलि भी होली, सिसक-सिसक हिचकी - हिचकी ले हमने झण्डा फहराया, वर्ष - गाँठ भारत स्वतन्त्र की बिना वर्तिका दिया जलाया, भूख प्यास में पल-पल कर यह दिवस आज का देखा है, टुकड़े टुकड़े के लाले सह दिवस आज का देखा है । हमने अपना लहू'
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy