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________________ दूसरीवार छपकर तैयार होगया। श्रीमान् जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकृत हरएक गृहस्थको उपयोगी सर्वोत्तम ग्रन्थ-- - गृहस्थधमे / जो प्रथमवार बिक जानेपर कई वर्षों से नहीं मिलता था दूसरीवार सूरतमें छपकर तैयार हो गया। गृहस्थधर्म में कौन 2 विषय हैं ? इस महान ग्रन्थके 31 अध्यायोंमें पुरुषार्थ, आदिकी विधि भी है। सारांश कि गृहस्थाश्रपमें, सम्यकूचारित्रकी आवश्यकता, श्रावक की पात्रता, सुख व धर्मरूप रहने के लिये इस 'गृहस्थधर्म गर्भाधानादि भी संस्कार का खुलासा व विधि, ग्रन्थ हरएक श्रावकके पाप्त रहना चाहिये। अजैनको श्रावककी पत्रता, श्रावक श्रेणी में प्रवे. इस एक ही ग्रन्थसे लौकिक, धार्मिक, सामाशाथ प्रारम्भिक श्रेणी, श्रावककी 11 प्रतिमा- जिक सभी कार्य सघ सकते हैं। पृष्ठ 312 ओंका अलग वर्णन, विवाह के पश्चात् गृहस्थके मूल्य 1 // ) डेढ़ रुपया। छावश्यक संस्कार, संस्कारित माताका उपय, गृहत्री धर्माचरण, समाधिरण क्रिया, जन्माण और चार नये ग्रंथ तैयार। अशा वका विचार, समर की कदर, जैनधर्म की शीपालचरित्र-तीसरीवार मू ) सनातनता व उन्नतिका उपाय, हम क्या खये जैन इतिहास-प्रथम भाग, दूसरीवार ) व पये, नित्यपूना आदि इतने विषयों का संग्रह आत्मधर्म-(ब.शीतकनीदनीकृत दुसरीवार) है कि इस ग्रन्थके पढ़नस एक जैनी जैनधर्म का मल्लीनाथपुराण-(खुरे पृष्ठ, सचित्र) सच्चा श्रद्धानी बन सकता हैं / यज्ञोपवित, विवाह श्रीपाल नाटक (नवीन बड़े अक्षरों में) मगाने का पतामैनेजर दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत। जन विजय " प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला,-सुरतमें मुलबुंद किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया और "दिगम्बर जैन" आफिस, चंदावाड़ी-सूरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।
SR No.543185
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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