SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देख चित्त जितना उदास हुआ था उससे कहीं अधिक शोंमें आल्हादित हुआ । मारतवर्षको दरिद्रावस्था और उसकी हीनावस्थासे उबारनेवाले यह ही सादे जीवन बितानेवाले प्रकृति प्रदास्य वृक्षत्रणसे स्वशरीर की रक्षा करनेवाले, अर्ध नग्न शरीर पर पानी की बौछारें सहते सिरपर बोझ ढोते अपेट भूखे रहनेवाले और • अपनी दशाका मान रखते हुए चरखा चला नेवाले ही धन्य हैं ? येही लोग हैं जो भारतवर्ष में इतना अनन उत्पन्न करते हैं कि अप पेट रह अधिकांश जगतको भोजन देते हैं । और यही लोग थे कि अनाजको ।) मन बेबा था । हत्यनिष्ठा के लिए मेगस्थनीज़ और एरियन सदृश विदेशी यात्रियोंसे मुखकंठसे प्रशंसाको पाते हुए थे । यही लोग थे जो चरखा चला करोडों रुपया कमाते थे । और उस सुतसे अद्वितीय कपड़ा बुनकर दुनिया में भारतका नाम रखते थे और हिंसमई पवित्रता का संदेश मे ते थे। वेनिससाहब ने लिखा है कि ढाकेका बा हुआ कपड़ा देखने से मालूम होता है जैसे देवताओंने बनाया हो। उसे देखकर यह नहीं मालव होता कि वह मनुष्यका बनाया हुआ है। क्यों न यह भ्रम हो ! उस कपड़े की विशुद्धता ही का प्रभाव था कि मा तीय सभ्यताकी प्रशंसा चहुंओर हो रही थी। लोग उसका अनुकरण करते थे । उस समय आधुनिक उच्चता के जपाने सदृश गऊ रक्त और चर्बी आदिका व्यवहार के० पी० जन । अपने तन ढकने के लिए बस्त्र (नाने में नहीं पवित्र काश्मीरी केशर किया जाता था । लोगोंको धर्म से गिराया न जाता था। पवित्र जीवन विताया जाता था । परधनी मानी विलासताप्रिय हम्य समानने का मात्र २||) की तोला है । मिलने का पतामैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत । उनकी अवहेलना की । उनके इन शुभ कृत्योंसे और आधुनिक दशासे क्या अब भी समान कुछ शिक्षा ग्रहण करेगी ? सादगी और प्रेमसे रहना सीखेगी ? और गरीबों के दुःखों को हटाने में अपना हाथ आगे बढ़ायगी ? यदि शुद्धताको अपनाया जाय तो खोई हुई शक्तियां पुनः जागृत हो जाँय । सोचिए ! विचारिए ! अपनी अपनी दशा पर ध्यान दीजिए ! संसार के अज्ञान अंधकार मेटने में अग्रसर होइए । अपनी बुराइयों को हटाइये जो आपका धार्मिक शारीरिक और आर्थिक ह्रास दिनों दिनों बढ़ा रही हैं। हिन्दी प्रन्थमाला में लिखा है कि कुछ दुनियांकी लड़ाईयोंमें सौवर्षके अन्दर (१७९३ से १९००) तक पचास लाख आदमी मरे गए हैं। पर हमारे हिंदुस्तान में केवल दस वर्ष (१८९१ से १९०१ तक ) अकाल और भूखके मारे एक करोड़ नब्बे लाख मनुष्योंने प्राण त्याग किये ! भारतवर्षकी इस घटतीको यदि आप रोकना चाहते हैं तो संयम और शुद्धताको अपनाइए और संसारको अपवित्र आत्मज्ञानका मन वरईए जिससे भविष्य में पूर्ण शांतिका साम्रज्य रहे । सर्व देशवासी सुख शांतिसे अपनी आत्माओंका कल्याण करें । वीर प्रभु ! हमें ऐसी ही सन्मति प्रदान करें यही भावना है ।
SR No.543185
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy