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८८ सचित्र खास अंक. <<
वर्ष ८] अने गर्भथी मांडी श्मशान पर्यंतनी लौकिक आ बन्ने गर्भधान अने अवतार क्रियाथी क्रिया खोटी समजवी. जे मंत्रमां हिंसा थाय छे. द्विज एटले के (द्वि-बे छे ते मंत्र नथी. भगवान तेज छे के जे वार. ज जन्मकुं) ब्राह्मण, क्षत्री अने सकल सुर असुर नरने शांति आपनार छे. वैश्य ए त्रणे वर्गने आ बधा संस्कार जे महा क्रूर, मांसाहारी, भयानक होय ते करवानो अधिकार छे. जेम कोईक जीव में देव कहेवाय नहिं. जे जिनभाषित छ, जुनुं शरीर छोडी नवीन धारण करे मुक्तिनुं साधन छे तेज मुनि, अर्जीका छे अने ते शरीर जन्म केहेवाय छे, तेज उत्तम श्रावकनो भेख छे, वाळ, चामडां, प्रमाणे मिथ्यात्व अवस्थानो त्याग करी, चीपीया वगेरे राखी फरवू ते भेख आगळ जीव ज्यारे सम्यक्त्व धारण करे त्यारे ते प्रमाण नथी. मांस रहित भोजन तेज शुद्ध धर्म जन्म अथवा अवतारक्रिया केहेवाय छे. आहार छे. जे मांसाहारी छे ते बधा जीव- वळी तेने व्रतनो लाभ थाय, एटला नो शत्रु छे. जे मुनि दयाळु छे तेनेज अ. माटे तेणे गुरुना चरणे प्रणाम करी विधिहिंसानी शुद्धता छे अने जे पशु वधमा पूर्वक आठ मूळगुण व्रत धारण करवां रत छे ते कदी शुद्ध परीणामी नथी. वि- तेनुं नाम व्रतलाभक्रिया छे. षयकामथी तेज विरक्त छे के जेणे मनथी उपवास करी विधिपूर्वक श्री जीनेश्वरनी इंद्रिय जीती छे, स्त्रीसंगथी पराङ्गमुख पूजा करवा मंदिरमां झीणा दळेला लोटथी छे अथवा जे श्रावक स्वस्त्री विषे संतोषी अथवा अनेक रंगना भूकाथी आठ पांखछे अने परदारा विषे पोते भाई समान छे डाना कमळनु मंडळ अथवा समोसरणनुं तेज कामथी शुद्ध छे. बीजा बधा तो विष- मंडळ विधि जाणनार पासे कढावी तेना यना पुतळारुप छे.
मध्यभागमां श्री जिनेश्वरनी प्रतिमा स्था__ आवी रीते ए भव्यजीव उत्तम वक्ता पन करी पूजन करे. पछी ते भव्यजीवने पासेथी धर्म श्रवण करी दयाना मार्गमां प्रतिमा सन्मूख बेसाडी, गुरुए तेना मस्तकबुद्धि धारण करे अने हिंसामांथी प्रीति नो स्पर्श करी एम केहेवू के 'तने श्रावकनी दूर करे त्यारे भव्यजीव धर्मरुपी जन्म दिक्षा आपुं छ.' पंचमुष्ठितुं विधान करी धारण करनार थाय छे. श्री गुरु तो धर्म तेना मस्तकनो स्पर्श कर्या पछी केहेवू के उपजावनारा पिता केहेवाय अने तत्त्वज्ञान 'आ दिक्षाथी तुं पवित्र थयो छे' एम गर्भ केहेवाय. तेनाथी नवीन अवतार कही तेना मस्तक पर तीर्थोदक रेडी पंच धारण करवो, ते अवतार क्रिया गर्भधान नमोकार मंत्रनो उपदेश आपी एम कहेवू क्रियानी माफक समजवी. जन्मनी प्राप्ति के 'आ मंत्र तने बधा पापमांथी मुक्त करी