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________________ अंक १] - दिगंबर जैन. ८९ पवित्र करे.' आ विधि पूरी थये जमवा एनुं नाम 'दृढचर्या' छे. प्रत्येक मासनी बे माटे घेर जवानी रजा आपवी. गुरुए आज आठम अने बे चौदशे उपवास करी रात्रे मारी उपर मोटी कृपा करी छे एम समजी कायोत्सर्ग धारण करवो तेनुं नाम उपयोशीष्ये हरखभेर घेर जवं. आ संस्कारर्नु गिता छे. नाम 'स्थानलाभ' छे. हवे अंतरंग शुद्धि माटे यज्ञोपवित : घेर गया पछी पोताना घरमां जे मि- (जनोई) धारण करी, व्रत, दिक्षानुं पालन थ्यात्वीना देव, देवीओ, गणेश, गणपति, देवगुरुनी साक्षी साथे विधि सहित करी, माता, हरमान वीगेरे जे कई होय, ते शुक्लवस्त्र पहेरी षटकर्म बरोबर नित्य करी प्रत्ये एम कहेवू के आजसूधी अमे अमारी जिनमार्गी थई गोत्र, जाति वीगेरे धारण अज्ञानताने लीधे तमारो मोटो आदर करी करवां, ए उपनीति नामनो नवमो संस्कार छे. पूजा-भाक्ति करी, पण आजथी हवे मने जनोई धारण करी व्रतचर्या पाळी साश्री जिनेश्वर देवज पूज्य छे माटे तेमनीज तमुं अंग जे उपासकाध्ययन तेना सूत्रोनो पूजा करीशुं, तो तमे अमारा उपर गुस्से अभ्यास गुरु पासे करवो, तेनुं नाम व्रतन थतां अहींथी नीकळी बीजी जग्याए चर्या छे. आ व्रत करतां सुधीमां ब्रह्मचारी जाव. एम कही ते मिथ्यादेवनी मूर्तिने रुपे रहे, चोटलीनी गांठ वाळी, माथु एवी कोई जग्याए मुकवी के ज्यां हरकत उघाडं राखी, गळामां जनोई पेहेरी, कम्मरे न थाय, तेम तेमनी पूजा पण न थाय. मुंजना त्रण तार वींटाळी, पवित्र उज्वल आ प्रमाणे पेहेलांना मिथ्यादेवने तजी धोती पहेरी, वगर जोडे, धोतीआ तथा शांत जिनदेवतानी पूजा करवी तेनुं नाम दुपट्टा सीवाय बीजा कंईपण विशेष वस्त्र 'गणग्रह' छे. __ वगर, घरेणां वगर, उपासकाध्ययननो पाठ __ पछी भगवाननी पूजा करी, उपवास करा रहे, त्यारे गृहस्थाचार्यनी समक्ष ब्रह्मकरी, द्वादशांग वीगेरे शास्त्र सांभळी. जिन- चारीनो भेख उतारी घरेणां अंगीकार वाणी धारण करवी, तेनुं नाम पुजाराध्य करवां तेने 'व्रतावतारण' कहे छे. छे. पछी पुण्यकारक चौद अंगपूर्व शास्त्र- पछी गुरुनी समक्ष पोतानी स्त्रीने श्राविनो अर्थ पोताना साधर्मी भाईओ साथे कानां व्रत अपावी तेनो स्वीकार करवो. सांभळको, तेनुं नाम पुण्ययज्ञ छे. पछी जो ते श्राविकानां व्रत न पाळे, तो तेनो जिनसूत्र सांभळी व्रतमा दृढता थाय एटला स्वीकार करवो नहिं, ए विवाह नामनो माटे न्याय, व्याकरण अलंकार, गणित, बारमो संस्कार केहेवाय छे. माता पिता जे विगेरे लौकिक विद्यानो अभ्यास करवो द्रव्य आपे ते लईने स्त्री सहित जुदा रहे,
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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