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अंक १]
> दिगंबर जैन. १९ SPNOSPROSPSese हार ! वीतरागधर्म ( जेमां क्रोध, मान, जैनोना सोळ संस्कार. माया तजवा कहेलं छे) सिवाय बीजा
धर्मोमां कषायनुं वर्णन होवाथी तथा (आदिपुराणने आधारे )
तेमनी क्रियाओमां हिंसा थती होवाथी लेखक-शा. नानचंद पुंजाभाई बी. ए.-वडोदरा. दोषवाळा मने लागे छे, भाटे मने निर्दोष
पवीत्र-धर्म समजावो. एवी रीते ज्यारे ते - द्विज एटले ब्राह्मण, क्षत्री अने वैश्य
भव्यजीव पूछे, त्यारे ते गुरु अथवा पंडिते ने गर्भाधानथी निर्वाण सुधीनी त्रेपनक्रिया करवा योग्य छे. उत्तम कुळमां जेनो जन्म
साचा दयामयी महाविवेकरुप धर्म
वर्णन करतां एम कहेQ जोईए के, हे भव्य छे, तेवो माणस जो आ क्रिया सांभळे, तेनो सारी पेठे अभ्यास करे, जिनेश्वरना
जीव ! तुं कल्याण माटे केवली अथवा मार्गमा बुद्धि परोवे अने ते महा बुद्धिवान
श्रुतकेवली-के जेमनां वचन सत्य छे, जे निकट संसारी पोतानी मेळे अथवा गुरुना
मोक्षमार्ग बतावनारा छे, जे रुप, तेज, उपदेशथी तत्वनो बोध पामी आ
गुणोना भंडार, आत्मरुप, ज्ञान, ध्यान,
दृष्टि, सुख, वीर्य, सिद्ध, दान अने सुंदक्रिया पाळे, तो ते त्रण जगत्नो चूडा
रता विगेरे गुणोने लीधे भगवान इंद्र, धरमणी थाय छे.
णेंद्र, चक्रवर्ती विगेरेमां श्रेष्ट छे, जे शामहाव्रत अने अणुव्रत पाळवामां जे स्त्रमा आप्त (सर्वज्ञ) अथवा परमेश्वर छे. ईच्छा थवी, तेनुं नाम दिक्षा; अने तेने जेमनां वचन वादिथी अखंडित, अद्वितीय, दृढ करनारी जे क्रिया ते दिक्षान्वय क्रिया अतिगंभीर अने संशय रहित छे-तेज केहेवाय छे. आ दिक्षान्वय क्रियाना ४८ धर्मनुं मूळ छे. भेद छ तेमांना पेहेला सोळ संस्कारनुं सर्वज्ञना वचनथी शास्त्र, मंत्र क्रियादि वर्णन अत्रे आपलं छे. पेहेली क्रिया सकल पदार्थ बराबर समजो. सर्वज्ञनां वर्णजे अवतारक्रिया केहेवाय छे ते वेलां द्वादशांग जे पाप रहित छे तेज शास्त्र नीचे प्रमाणे छे.
छे, तेज वेद छे के जेमां हिंसानो उपदेश विधि वगर रहेवाथी जे भव्यजीव बीलकुल नथी, तेज षट्कर्म छे के जेमां दोषीत थयेलो छे तेणे महा बुद्धिवान, पाप त्याग करवानुं कहलं छे; जेमके देवसदाचरण पाळनारा · एवा कोई साधु पुजा, गुरुसेवा, स्वाध्याय, संयम, तप अथवा उत्तम श्रावक पासे जइने एवी अने दान. गर्भादिथी निर्वाण पर्यंत जे विनंती करवी के हे महा बुद्धिनाधारण- क्रिया शास्त्रमा बतावेली छे तेज खरी छे,