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> सचित्र खास अंक. 4
वर्ष ८ ] ण्डरायके लडकोंने बनवाया है। ऊपरके नजदीक दो शिला-लेख पत्थरपर खुदे मन्दिर में श्री १००८ पार्श्वनाथकी प्रतिमाभी हुए हैं । वे शिलालेख मराठी और कन्नड चामुण्डरायके पुत्रोंने ही बिराजमान कराई भाषामें; तथा देवनागरी और कन्नड है । लोग कहते हैं कि, पिताके स्मरणार्थ लिपिमें हैं। ही इस मन्दिरकी स्थापना इन्होंने की है। श्री चामुण्डराजें करवायलें। .. इसका समय लगभग ई. स. ९९५ है। दर्शनके लिये तथा प्राचीन जैन-शिल्पसा- अर्थात्-इसका निर्माण चामुण्डराजाने हित्यका नमूना बतलाने के लिये इस मन्दिः करवाया है। दूसरा शिलालेखःरका चित्र भी इसी किरणमें हमने प्रका
श्री गंगाराजे चुत्ताले करवायलें । शित किया है। मन्दिरका बाह्य दृश्य भी प्राचीन चित्रकलाकी अच्छी छटा
जिसका अर्थ-महाराज गंगाराजने बता रहा है।
इधरका चैत्यालय बनवाया है, ऐसा है । कहा जाता है कि, इसी महाराज यह गंगकुलोत्पन्न परम जैनधर्माभिमानी चामुण्डरायने विन्ध्यर्पवतपर श्री १००८ महाराज गंगराज, चामुण्डराजके दोसौ बाहुबली स्वामीकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा बरस पीछे हुए हैं, ऐसा ज्ञात होता है । भगवन्नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्ति-द्वारा की ८-नंबर ७ के मन्दिरके पासहीमें है। श्री १००८ बाहुबली स्वामीकी प्रति- श्री १००८ आदिनाथ तीर्थकरका मन्दिर मा उत्तराभिमुखी और लगभग ७० फीट है। इसमें सिंहासनपर श्री १००८ आदिऊंची है। प्रतिमाकी शिल्पकलाकी घटना नाथ तीर्थकरकी मूर्ति तथा सव्य और वाम इतनी अपूर्व और मनोहर है कि, हजारों
भागमें चमर लिये हुए इंद्रकी दो प्रतिमा बार प्रतिमाका दर्शन करने पर भी नेत्रकी
स्थापित है। दोनों इंद्रोंके आसपासमें अनिमेष-दर्शनेच्छा नहीं तृप्त होती।
। यक्ष और यक्षिणीकी मनोज्ञ मूर्ति विद्यमान प्रतिमाका विशाल स्वरूप, मधुर लावण्य, :
1. है । इस पूर्वाभिमुख मंदिरको 'शासन शिल्पकारीगरीकी सांगोपांग पूर्णता और परमशांत गंभीर ध्यान दर्शकोंके हृदयपर
. वस्ती' भी कहते हैं। बहुत ही असर करते है। कहा जाता है ९-उपरिनिर्दिष्ट मंदिरके सामने दाक्षकि दुनियामें जो आज बड़े बड़े तीन मू- णाभिमुखी मज्जीगण' नामकी वस्ती तियां विद्यमान हैं; उन सबोंमें यहांकीसी है । इसमें भी यक्ष-यक्षिके साथ मूर्ती अन्यत्र कहीं भी नहीं है। इस श्री १००८ अनंतनाथ तीर्थकरकी परम विशाल प्रतिमाके दोनों तरफ चरणके गंभीर और शांतध्यानकी मूर्ति है।