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________________ ७७ अंक १:] 2 दिगंबर जैन. ६ १०-यह ' एरडूक? ' नामक उत्तराभि- श्री १००८ महावीरस्वामीका एक मन्दिर मुखका चैत्यालय है । इसमें यक्ष यक्षिणी- है। किन्तु शोक है कि, यह मन्दिर बहुतथा इंद्र-इंद्राणीके साथ श्री १००८ तही जीर्णावस्थामें है। तीर्थ-संरक्षकोंको इआदिनाथ तीर्थंकरकी प्रतिमा है। सकी ओर ध्यान देना चाहिए । , ११-उपर्युक्त मंदिरके पार्श्वहीमें 'सती- प्रिय पाठक महोदयों ! यहां थोडासा गंधवर्ण' नामक उत्तराभिमुखी वस्ती है; चंद्रगिरिका दृश्य आपलोगोंके सम्मुख जिसमें श्री. १००८ नेमिनाथ स्वामीकी प्रदर्शित किया । समयानुसार इसका और एक बड़ी मनोज्ञ प्रतिमा है। विशेष परिचय हम देनेका प्रयत्न करगें । १२-यह 'गोमटेश्वर स्वामी' नामक ("जैन सिद्धांत भास्कर' किरण २-३से उद्धृत) वस्ती उपर्युक्त वस्तीकी दाहिनी ओर है। - इसमें श्री१००८ बाहबली स्वामीकी प्रति- 80DDOORDog मा यक्ष-यक्षिणीके साथ बिराजमान हैं। सद्उपदेशरुपी संवाद. ४ १३-यह अन्तिम उत्तराभिमख मन्दिर 80PDooD9o बिल्कुल ईशान कोणमें है। इसमें श्री (बम:-पुनशी १२०धुन शाह-ml) १००८ शान्तिनाथ स्वामीकी सुन्दर मूर्ति है। ५३५-मा! मा! ॥ १मते, मा श्री १०८ भद्रबाहस्वामीकी गुंफासे व्याथा यीश मे मातु न ! भ6लेकर चंद्रगिरिपर्वततक सब मिलकर १५ भीमे ३८ सय २ ३५ ५४ छ ? વિધવાબાઇ – હા, તારી વ્યાધિ એવું સૂચવે છે ખરૂ! તને થતી પીડા ભયંકર દેખાય છે ખરી ! પણ, તારાં કરેલાં ભયંકર કર્યો हुए 'मल्लिषेण प्रशस्ति' आदि लगभग આગળ તે થોડીજ હશે, એવું તને નથી १०० शिलालेख बड़े ही महत्वके हैं। साग ? प्राकारपरिवेष्टित इस चंद्रगिरिपर्वतके ५३५-थाडी ते शुश? अन तमा લાગવાનું શું હશે ? આ સ્પષ્ટ રીતે થતી વ્યાધિઓ હું મહા મુશીબતે ભોગવું છું ! का एक मार्ग है। जिननाथपुरी प्रवेश पांसमायामा यता भाव। सो सय ४२ करने के पहले ही एक सुरम्य सरोवर छ ! छti आम म । छ। ? मिलता है। इसके तटपर श्री १००८ वि० -सत्सद छु', मोरी पार्श्वनाथ भगवानके उत्तराभिमुख दो ५२मा आवेश नहीमा तरता, अने भोट माटी સાત માળ સહજમાં ઉતરતાં, મૃત્યુથી પણ मन्दिर हैं। जिननाथपुरीमें प्राचीन द्रावि- रे नही, रे भुटीमा ७५ रामी हमेशा ३२डीयशिल्पकलाकी सर्व सुंदर समृद्धि-शाली ना२, ते मा १२सी व्याधि शुरनारछ?
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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