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________________ ७२ [ वर्ष ८ O 7@yy JAADI Ty OR > सचित्र खास अंक. १९ A .....more! यह स्थान चन्द्रायपट्टण तालुकमें १२५६ उत्तर अक्षांश और ७६३६ उत्तर रेखांशपर श्रा चद्रागार पकता है। श्रवणबेलगुलमें जैनाचार्योंका मठ, ताड़ पत्रांकित अलभ्य जैनग्रन्थ और अनेक प्राचीन जैनमन्दिर हैं । यह स्थान जैन ब्राह्मणोंकी तपोभूमि है तथा इस स्थानको , सोर राज्यान्तर्गत हासन बड़े बड़े जैनाचार्यों और जैन-ग्रंथ-कर्ताजिलेमें एम्. एस्. एम्. ओंने विभूषित किया है । विन्ध्यागिरिकी रेलवेके आरसीकेरी स्टेश- उंचास भूपृष्ठसे ३३४७ फूट है और च नसे ४२ माइलपर 'श्र- न्द्रगिरि पर्वतकी उंचास ३०५२ फूट है। वणबेलगुल' नामक एक बहुत सुप्रसिद्ध कन्नड भाषामें विन्ध्यगिरिको दोड्डट्ट और धार्मिक स्थान चिरकालसे विद्यमान है। चन्द्रगिरिको चिकबट्ट कहते हैं । विन्ध्य इसके उत्तरओर चन्द्रगिरि तथा दक्षिणओर और चन्द्रगिरिकी सार्थकता लोगोंने इस विन्ध्यगिरि पर्वत हैं । दोनों पर्वतोंके बी- प्रकार की है:-विम् (आत्मा) ध्या (ध्यान) चमें श्रवणबेलगुल ग्राम वसाया गया है। अर्थात् आत्मध्यान करनेका स्थान । इसका 'श्रवणबेलगुल' शब्द हल्लीकन्नड (प्राचीन निष्कर्ष यह हुआ कि, इस पर्वतपर अनेक कर्नाटकी) भाषाका है । संस्कृतमें इस श- ऋषि मुनियोंने आत्मध्यान कर अपना जीब्दका अनुवाद 'धवलसरोवर' होता है। वन उत्सर्ग किया है। इसलिये इसका नाइस ग्रामके नाममें सरोवर शब्द संयोजित म विन्ध्यपर्वत रक्खा गया । दूसरे पर्वतपर करनेका कारण यह है कि, यहां एक चन्द्रगुप्त मुनिने अपने गुरु भद्रबाहु स्वाभूदेवीमंगलादर्शकल्याणी नाम्नी सरसी है। मीकी चरण-पादुकाकी निरन्तर सेवा कर यह बड़ी लम्बी चौड़ी है। समुद्रकीनाई ऐहिक लीला परिसमाप्त की है इसलिये इसमें अथाह जल है । इसका जल कभी इनके चिरस्मरणार्थही इस पर्वतके नामों सूखता नहीं । जब देशमें अवर्षण होता 'चन्द्र ' जोड़ दिया गया है । जिस विहै तो तृषाशांति के लिये बहुत दूर दूरसे न्ध्यगिरि पर्वतपर श्री १००८ बाहुवलिलोग आकर इसके आश्रित होते हैं। स्वामीकी सुरम्य मूर्ति लगभग ७० फूट इसको श्रवणबेलगुलका कटिभूषण समझना उंची है, इसका सविस्तर परिचय हम अचाहिए । इस सरोवरके विशेष प्रसिद्धिंगत गली किसी किरणमें करायगें । सम्प्रति होनेसे ही माहाराज अशोकने इस ग्रामके हम चंद्रगिरिका परिचय पाठकोंके सम्मुख नाम भी 'सरोवर' शब्द संवलित कर दिया। उपस्थित करते हैं।
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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