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________________ - सचित्र खास अंक. ६ मळी शकशे. वळी आ अंकमां एक नवीनता- काळजीपूर्वक रीते आ अंक तैयार करी . ए जणाशे के जे जे लेखकोए आ अंकने उत्तम नार "सुरत जैन" प्रेसनो आ स्थळे धन्य । लेखोथी सुशोभित कयों छे, तेमांना बनी शक्या पूर्वक आभार मानीए छीए. पुष्कळ पत्र । तेटला लेखकानुं सम्मिलित चित्र तैयार वहार अने कोशीश करवा छतां आ अंक करी प्रकट करवामां आव्युं छे, के जे प्रथा अमो कलकत्ताना बे जाणीता पुरुषो स्वर नवीनज छ; अने ए प्रथाथी जैन लेखकोना श्रीमान् शेठे परमेष्टीदासजी अने ब उत्साहमां अजब वधारो थवा अनेक संभव छे. धन्नूलालजी सोलीसीटर, के जे बे नरो आवळी एक वध ध्यान खेंचनारो जो कोई फोटो दिगंबर जैन कोम तरफथी. श्री समेदशिर: आ अकमां होय, तो ते इटालीअन विद्वान संबंधीनो केस वर्षो थयां चलावी रहेला ह डॉ. एल. पी. टेसीटॉरीनो छे के जे विद्वान अने जेमनो जैन कोम उपरनो उपकार अगतं नरे जैनधर्मनुं अच्छु ज्ञान प्राप्त कर्यु छे अने हतो तेमनां चित्रो अने परिचय अमो प्र मांसाहार छोडी वनस्पत्याहारी बनेला छे, तेमज करी शक्या नथी, तेथी अमने खेद थाय । बे चार नहिं पण जूदी जूदी १०-१२ भाषा- पण भविष्यमां आ परोपकारी नरोनो सपि. ओना अच्छा जाणकार अने प्राचीन साहि- परीचय प्रकट करवा अमो बनतुं कर त्यना अगाढ प्रेमी छे. आ विद्वान नरनी विशेष ईच्छा राखीए छीए. छेवटमां एटलुज जप माहिती चित्रपरिचयमांथी मळी शकशेज. वीशुं, के आ बालकनुं आ आठमुं वर्ष नितिन पसार थाओ, तेम युरोपना महाभारत युद्ध । 'एक हाथे कंई ताळी पडती नथी' ए निवेडो जल्दी आवी, राजा प्रजा वच्चे शां उक्ति मुजब आवो थई, प्रतापी अने न्यायी ब्रीटीश राज्य आभार. अंक प्रकट करवा विजय थाओ! जैन कोममां नवा दानवी माटे जूदी जूदी . उत्पन्न थई जैन कोमनी उन्नतिनां कार्यो वक्ष, मददनी जरूर पडे छे, ते मुजब आ अंक प्रकट वधु थवा पामो, तेमज आ आठ वर्षतुं बार करवामां ब्र. शीतलप्रसादजी, बाबू ज्योतिप्रसा पण निर्विघ्ने दिनप्रतिदिन वधु अने वधु लाई दजी, पं. नाथूरामजी प्रेमी, कुमार देवेंद्रप्रसा __ आपवा शक्तिवान थई जैन जातिनी वधु से दजी, पं.पन्नालालजी बाकलीवाल,मा.दीपचंदजी.. बजाववा पगभर थतुं रहो एज अमारी आंग मी. मणीलाल एच. उदाणी, मी. बी. पी. रिक भावना छे. पाटील वगेरेए योग्य सलाहो पुरी पाडी आ । कार्यने उत्तेजित कर्य छे, ते माटे तेमनो तथा आ अंक जोतांनी साथे सुज्ञ वांचकोने । जे जे लेखकोए आ अंकने ७ भाषाना उत्तम णाशे के ए तैयार करवा पाछळ केटली बधी ज्हेम ! : लेखोथी शणगार्यों छे, तेमज जे जे.संस्थाओए, उठाववी पडी हा तीर्थना कार्यवाहकोए, श्रीमानोए तथा विद्वा- ग्राहकोनी आतुरता. जो के अमोए आ । नोए आ अंक माटे अमारी सूचना मुजब चित्रो __नना अंकमां खु मोकली आप्या छे, तेमनो तथा त्वराथी अने रीते प्रकट कर्यु हतु के आ अंक कार्तिक सु:
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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