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________________ अंक १] > दिगंबर जैन विनोद बाण मीठो मीठो सबरस ! सबरस ! सबरस !! बेसते वरसे सबरस ! ! ! महावीर निर्वाणोत्सवनो सबरस ! वांचको ! जोजो, आ सबरस खारो उस जेवो नथी हों ! ए तो मीठो साकर जेवो छे ! समज्या के ? एमां तो तमाम गळ्या गळ्या धर्मना रहस्यवाळा | अने विद्वान लेखकोना पेटना उभराना तत्वो सबरसरूपे भरलां छे ! सबरस जो जरा वधारे खवाय, तो लागलीज उलटी के झाडा गमे ते थई जाय अने आकळविकळ करी नांखे, पण आतमारा सेवकनो सबरस तो गमे तेटला फाकेफाका मारी खाओ, तोपण कशो वांको वाळ के उलटी, अरुचि कशुंए थवानुंज नहिं ! जेम खाओ, तेम वधारे खावानुं मनज थया करशेने ! एवो मारा सर्वोत्तम सबरसनो गुण छे हों ! पण जोजो ! बहु लोभना मार्या, सामटुं खाई मारुं बहु मूल्यनो सबरस खुटाडी न देता ! नहिं तो पछी हुं बीजुं लावीश क्यांथी ? केमके पेला पेटारा ओमां पडेला कीडाओ अने उधाईओ पछी खाशे शुं ? ते फिकर छे !!! * डगुं, पण में ना डगुं ! जुओनी ! पेलो नागोरनो मोटो शास्त्रभंडार के जेमां हझारो पुस्तको छे, अने ते खासो सडया करतो हशे ! पण कोईने जोवो होय के वांचवा जोईए तो तेना मालिक बनेला भट्टारक बावा पाडे छे चोख्खी ना, केमके बळी कोई शीखे के छपावी दे तो तेमनुं मान दोढ खांडी ओछु थई जाय केनी ? अने पेला छापाना विरोधओनुं पाकी आवी उछलकूद करी मुके ते जुदुं ! कोण जाणे शा मोटा पहाड जेवा ! कारणथी ना पाडता हशे ? हमणाज थोडा दिवस उपर पं. पन्नालालजी बाकलीवाले दोढ महिना सुधी धामा नांखी परमेश्वर जेटला कालावाला कर्या, पण बडा बावा डगेज शाना ? ना ते नाज. हा थाय त्यारे तो कागडा काळा मेंसज थई जाय केनी ? एतो "ठें डगुं पण में ना डगुं” !!! * * + जल्दी ते क्यांथी मळी जाय ? अधिपतिराज ! तमे पण बडा जबरा तो खरा ! लोकोनी अने तमारा बळापाखोर मिsोनी आंखमां खूंचे एवं काम करी बताघघा मंडी पडया छो ! खास अंक माटेना आमंत्रणना आकर्षणीय नोतरां ! ज्यां जोईए त्यां तैयार ! जवांचे ते ललचाया विना रहेज नहिं. क्यारे मंगा ने क्यारे वांचुं ? क्यारे चित्रो जोउं ने क्यारे मित्रोना लेख वांचं ? क्यारे नकळशे ने क्यारे हाथमां आवी उभो रहेशे ? एवा अनेक विचारो दरेकना हृदयतरंगमां उभा या विना रहेज नहिं, पण जल्दी ते क्यांथी मळी जाय ? कांई लाडबा खावाना छे ? एटला एटला लेखो अने एटला एटला चित्रो मेळववा, तेना ब्लोक बनाववा, छपाववा, सुधारवा, मगजनुं राइतुं करवुं विगरे कांइ थोडी खटपट अने जेमत छे? एतो बा तमेज भांगफोडीया ! थई रह्या ते मफतमां एटली मेहेनत कर्या करो, बाकी बंदो कांई एवी मफतीया मजुरी करे नहिं ! तेम कोई पण करे नहिं ! पेहेला पेट पछी वेठ, पण तमे तो अवधिज करो छो !
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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