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________________ ११८ A सचित्र खास अंक. [वर्ष ८ धुइपंच। संसारमज्झे भममाणजीवा दुक्खादु काही बहुहा पलावं । - ता थाविआ जेण सुहस्स मग्गे णवेज हं तं जिणरायरायं ॥१॥ णसेज तिव्वो वि अ कम्मबंधो अमुत्थ अप्पाण सुदुक्खआरी । गुणेण कित्तेण पहुस्स जस्स णवेज हं तं जिणरायरायं ॥२॥ गयम्मि गब्भं पुढवीइ जस्स (जत्थ) हरिस्स आणाइ छमासपव्वं । कुणंति देवा रयणाण विहिँ णवेज हं तं जिणरायरायं ॥३॥ पंचिंदियाणं विसयं विमोत्तुं तणव्व रजं च अणिचमाहो । काही तवं कम्मविहेदणत्थं णवेज हं तं जिणरायरायं ॥४॥ अप्पाण सब्भावमण तंणाणं सदसणं तव्व चरित्तिमं च । तिव्वाइ पत्तो तव सत्तिए जो णवेज हं तं जिणरायरायं ॥५॥ कया थुइ सिरीलालजइ णेण सुभत्तिए । पढिआ देज सव्वेंसि सव्वकालम्मि सग्गइं॥ कायाके बारेमें। गझल काया गढ़ जीतनेका अब, कर तजवीज़ सोया क्युं ? षडरिपुंसे मिला हय तूं, उसिको दूर न करता क्युं ? बना हय मिट्टीका पूतला, उसीमें दिल लगाया क्युं ? अरे हरदम क्या कहेता हय, बनाता झूट सच अब क्युं ? पकडले नेकीकी अब राह, झूठेको मनाता क्युं ? एक दिन ऐसा आवेगा, जी काया छोड़ जावेगा ! देंगा जब वहां सब कुच्छ, फीर पस्ताके रोता क्युं ? रुस्तम भी गया देख लो, बहेराम न जमीपे क्यं ? बड़े अफसर चले गये जब, एक ही तू रहेगा क्यु ? चले गये और भी कितने, तेरी निगाहके साम्हने ! देखा नझरोंसे बहोत ही खूब, अब तक तूं सोया हय क्युं ? कलजुग नहीं करजुग हय, ये हाथ दे और ये हाथ ले ! क्या खूब सवदा नझरसे देख, गुमाना उम्र बाकी क्युं ? काया मट्टीकी मट्टीमें, मिलेंगी एक दिन प्यारे, पुनसी अब ध्यान दे दे तूं, भला जीका न करता क्युं ?
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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