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अंक १ ]
माया, लोभके विचार उप्तन्न होते हैं, उनका नाम भावकर्ष है । संसार में पुद्गल के सूक्ष्म परमाणु सर्वत्र भरे हुए है । आत्मा के भावकर्मके कारण वे सूक्ष्म परमाणु आ
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की ओर आकर्षित होते हैं । इसका नाम कर्पास्त्र है । वे सूक्ष्म परमाणु जो आत्माकी ओर खिंचकर आते हैं, आत्माकी तीव्र वा मंद कषाय के अनुसार एक समय विशेष के लिए आत्मासे बंध जाते हैं, इसका नाम कर्मबंध है । यद्यपि ये सूक्ष्म परमाणु निर्जीव पदार्थ है परंतु आत्माकी कषायके कारण उनमें एक प्रकारकी शक्ति आत्माको सुख वा दुःख देनेकी पैदा हो जाती है 1 जो परमाणु शुभ विचारों, शुभ रागके कारण से बंधते हैं वे आत्माको सुख पहुंचाते हैं और जो परमाणु अशुभ विचारों, घृणा, द्वेष आदि अशुभ योगसे बंधते हैं वे आत्माको दुःख पहुंचाते हैं । ये सूक्ष्म परमाणु ही द्रव्यकर्म हैं । जिस प्रकार वृक्ष पर फल समय आने पर पकते हैं, इसी प्रकार ये द्रव्य कर्म भी । अपने समय पर आकर फल अर्थात् आ त्माको सुख दुःख देते हैं । साधारणतया ये द्रव्यकर्म समय पर आकर फल देते हैं, परंतु कभी२ ऋषि मुनि लोग अपने तप ध्यान के बल से कर्मको समय से पहले ही पकाकर उदयमें ले आते हैं जिस प्रकार कि आम को पालमें दबाकर समयसे पहलेही पका लेते है । कर्मका फल देना ही उसका
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दिगंबर जन स
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उदयमें आना कहलाता है । जब आत्मा जीव अजीवके वास्तविक स्वरुपको जानता है और अपने शुद्ध स्वभावमें श्रद्धान करता है तथा रागद्वेषादिको छोड़कर निज स्वभावमें लीन होता है तो उससे कर्मका आस्रव रुक जाता है । उसको कर्मका सम्बर कहते है परंतु जब आत्मा कर्मके फल अर्थात् सुखदुःखको भोगता है उस समय क्लेश तथा अन्य प्रकार के कषाय भाव करता है जिससे आगेको नवीन कर्मका बंध हो जाता है । यदि आत्मा कर्मके फलको समता तथा शांतभाव से संतोष के साथ भोगे और रागद्वेष न करे तो आगामी में कर्मका आस्रव रुक जाता है अर्थात् कर्मका सम्बर हो जाता है । कर्मका आत्मासे पृथक होने का नाम निर्जरा है । कर्म आत्मासे सदैव अपना फल दे देकर पृथक् होते रहते है अर्थात् साधारण रुपसे सदैव कर्मोंकी निर्जरा होती रहती है और नवीन कर्मोंका बंध होता रहता है । तप, ध्यान आदिके द्वारा भी कमोंकी निर्जरा होती है और जब सम्बर से नवीन कर्मोंका बंध नहीं होता तथा पिछले सम्पूर्ण कर्म पृथक् हो जाते हैं उस समय आत्मा की मोक्षावस्था हो जाती है अर्थात् भावकर्म तथा द्रव्यकर्म दोनोंसे मुक्त होकर आत्मा अपने वास्तविक शुद्ध स्वरुप अर्थात् अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत वीर्य आदिको प्राप्त कर लेता है । [शेषमग्रे ।]