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>> सचित्र खास अंक.
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एक,
इसी प्रकार अनेकांत रुपसें जैन धर्म द्रव्यको र्मका अनेकांत एक ऐसा एक व अनेक मानता है । जैन धर्मानुसार अनेकमें अविनाभावी सम्बंध है । एकक बिना अनेक नहीं हो सकता और अनेकके बिना एक नहीं हो सकता। ऐसा नहीं है कि एकका अस्तित्व अनेकसे बाहर कहीं पृथक वा भिन्न है और अनेकका अस्तित्व एकसे बाहर कहीं पृथक है किंतु एक अनेक में है ओर अनेक एकमें ।
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वास्तव में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है कि जो किसी धर्मसे बिरोध नहीं रखता, किसी धर्म के सिद्धांतोंको झूठा नहीं बतलाता है, किंतु सम्पूर्ण धर्मोके सिद्धांतोंको अनेकांतसे सञ्चा सिद्ध करता है । वास्तव में देखा जाए तो अद्वैत व द्वैत आदि समस्त मत जैन धर्मके अंदर सामिल है । जैन धर्म एक समुद्र के सदृश है और अन्य सम - स्त धर्म उसके अंदर लहरोंकी समान है । यदि प्रत्येक लहर समुद्र के अंदर अपने यथेष्ट स्थानपर है, तो वह समुद्र ही है, परंतु यदि उस लहरको उसके उचित स्थानमरसें समुद्रमेंसे बाहर निकाल लिया जाए तो वह समुद्र नहीं कहला सकती । इसी प्रकार यदि प्रत्येक धर्मके सिद्धांत अनेकांत रुपसे जैन धर्मके अंदर है, तो जैन धर्मही है । यदि अनकांतसे निकालकर उनको एकांत रुपसे विना किसी गुण वा अपेक्षाके माना जाए तो जैन धर्म नहीं हैं । जैन ध
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[ वर्ष ८ सिद्धांत है कि मतभेद और हो जाते हैं, मित्रता बढ़ती है।
जिससे समस्त धर्मों के
लड़ाई आपस मे प्रेम और
झगड़े
दूर
और समस्त मत सच्चे प्रतीत होते है । अनेकांत एक ऐसा चश्मा है कि जिसके लगानेसे ज्ञान और सत्यताका प्रकाश हो जाता है, पक्षपातका सत्यानाश हो जाता है और जगतभरके ऋषियों, मुनियों, महात्माओं और अवतारोंके वाक्य सच्चे ही सच्चे मालूम होते हैं ।
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दुसरा सिद्धांत जो जैन धर्म के महत्वको प्रगट करता है, -कर्म सिद्धांत है । यों तो सनातनधर्मी, आर्यसमाजी आदि अन्य मतावलम्बी भी कर्म के सिद्धांत को मानते हैं परंतु उनके यहां कर्मका सिद्धांत अपूर्ण और अव्यक्तसा है । वे केवल क्रियाको कर्म मानते है । यह कुछ नहीं बता सकते कि कर्मका बंध किसको कहते है । कर्मका आस्रव तथा बंध किस तरह होता ? कर्म फल किस तरह देता है और कर्म आत्मासे पृथक् किस तरह होता ? प्रश्नोंका उत्तर अन्य मतावलम्बियोंका कर्मसिद्धांत कुछ नहीं दे सकता। जैन धर्म इन सब बातोंको विशद रुपसे बतलाता है । जैन धर्ममें कर्म के दो भेद किए गए हैं:
१. भावकर्म, २. द्रव्यकर्म । आत्मामें जो पुद्गल के समावेश से राग, द्वेष, क्रोध, मान,