________________
दिगंबर जैन.
अंक १]
दयामयी सुशिक्षा.
प्रिय सज्जनों! आप हम सभी चाहते हैं कि भारतमें अशांति दूर होकर सुख और शांतिकी वृद्धि हो । यह वही भारतकी वसुन्धरा है जहां पर बड़े२ ऋषिमहात्माओंने जन्म लिया और स्वर्ग देवादिक जिसमें जन्म लेनेकी अत्यन्तं इच्छा रखते हैं, क्योंकि यह भारतभूमि एक ऐसा स्थान है जहां पर सच प्रकारके आनन्दोंका वास रहता है ।
११९
"
करना पड़ता था, क्योंकि “ जैसी करणी वैसी भरणी । की कहावत प्रसिद्ध है । अर्थात् जैसी हमारी करणी होगी वैसा ही फल प्रगट होगा | जब अच्छे ख्यालात, अच्छे कर्तव्य होते थे, तो अच्छा ही फल, सुख और शांति मिलती थी और शासनकर्त्ता ( भूपति ) को भी ज्यादह प्रबंधादि करनेकी तकलीफ नहीं उठानी पड़ती थी, ये सब दयामयी सुशिक्षा ( Humane Education ) का फल था । परंतु देखा जाता है वही भारत समयके फेरसे . आज दुःख और अशांतिका स्थान हो रहा है। चहूं ओर बारदातें, डकैती व हिंसाके उपद्रव लड़ाई झगड़े, चोरी, व्यभिचार आदि जुल्म सुननेमें आते हैं। झूठ, दगाबाजी की प्रचूरता हो रही है, एक दूसरेके साथ प्रेम का अभाव हो रहा है, स्वभावोंमें कठोरता, निर्दयता, क्रूरता, बढ़ रही है, खानपान भ्रष्ट हो रहा है, दिनपर दिन दुष्कालका सामना करना पड़ रहा है, अनेक बिमारियोंकी वृद्धि हो रही है इत्यादि । यह सब उस दयामयी शिक्षाका न होने का ही फल प्रकट हो रहा है ।
पहिले जब कि ऋषिमहात्मा इस भूमिपर विद्यमान थे, तो उनके द्वारा दयामयी सद् उपदेश रूपी अमृतवृष्टि होने से सर्व प्रकार की शांतिही रहती थी, हिंसाके उपद्रव डांका, चोरी, व्याभिचार, आदिके जूल्मों का अभाव रहता था, असत्य तथा दगाबाजीका नाम नहीं जानते थे, एक दुसरेके साथ प्रेमका बर्ताव रखते थे, स्वप्नर्मेभी किसीको बाधा पहुंचाने के ख्यालात ( इच्छा, मंशा ) नहीं होते थे, दुसरेकी आपत्तिमें मददगार रहते थे, सबको अपने भाई बंधुओं की तरह समझते थे, स्वभावों में कुरता स्थान नहीं पा सकती थी, सरल स्वभावधारी रहते थे, मनुष्योंकी तो क्याबात, क्रूर स्वभावी सिंहादिक जानवर भी अपनी क्रूरताको छोड़कर रहते थे, यही सबब था कि सब प्रकारकी शांति और सुखका अनुभव होता था, कभी दुर्भिक्ष, महामारी आदि उपद्रवोंका सामना नहीं
बस, प्यारे भारतवासीयों ! यदि आप इन उपद्रवोंसे बचना चाहते हैं तो उसके लिये दयामयी सुशिक्षा ( Humane Education) की बड़ी आवश्यकता है । जबतक दयामयी शिक्षाका प्रकाश न हो