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________________ ९८ > सचित्र खास अंक. Ek [ वर्ष ८ न्हानकडी स्त्रीने वैधव्यर्नु अनिवार्य दुःख चंचळ:-हा, म्हें पण एक वात सांभळी वेठवू पडे छे, ते भोगवतां कुटुंबीजन छ के, काठीयावाडमां जैन विधवा बहनो कोई प्रितीथी धीरज आपी साह्य करतुं आम तेम रखडे छे अने अभण अवस्थामा नथी. कहेवत छे के, “घर फर्यु एटले खावापीवानी जोगवाई नहीं होवाथी पुनः घरना वांसा पण फरे छे" तेने मीठा विवाह (नातलं!) करवानी खटपट चलावी बोल संभळाववा पण मोंघा थई पडे छे. रही छे, अने एक बे करी पण चुकी छे विधवा स्त्रीओन मन चार उपायाथी माटे व्हेनो ! आनुं मूळ कारण बाळकेळवाय तो शांत रहे छे. विवाह; ते उखेडी नांखवु अने पहेला जे जीवकोरः-ते वळी चार उपायो कया। अविचारथी थयेलां छे तेनु, उपर कहेला __ योग्य उपायथी रक्षण करवं. चारे तरफ कया ? ते समजावो तो खरा ! उपदेशक तरीके फरी तेमने समजाववा, ___ हरकोरः-(१) मीठां वचन बोली अने एक फंड उभं करी तेमांथी मदद मनने थंड करवं. (२) थंडी नजरथी आपवी, तेमज आश्रममां केळवणी माटे तेमने धाकमा राखवा. (३) कांई चीज- दाखल कराववी, ज्यां तेओ केळवाईने वस्तु मांगे तो तेने योग्य जोई प्रसन्नताथी पोतानुं गुजरान सारी पेठे करी शकशे. आपवी, अने (४) विद्या भणावी धर्मोपदेश बाळलग्नथी बीजं नुकशान-छोकरा आपवो. तेमनुं मन वैराग्यनी तरफ दोराय तथा छोकरओि भणवानुं छोडी दे छे अने तेवां पुस्तको लावी आपवा, परोपकारमां अभण रही जेमतेम करी महामहेनते तेमनुं मन खेचाय तेवां कृत्यो बताववा अने गुजरान चलावे छे अथवा तो तेटलुं पण दृष्टांत संभळाववा, एटले सुखेथी तेओ धर्ममां न बने तो देवादार बनी, केटॅलीकवार दृढ रही नितिथी वर्तन करी, शांतिमां हत्या करी मरवु पडे छे, वळी अल्प पोतानी पर्यायन गुजरान करशे, नहि तो मृत्युनुं बीजं कारण शरिर्नु स्वास्थ्य राखकुमळी वयमां उपर कहेला निमित्तो नहीं तां नहीं आवडवू; प्रकृति विरुद्ध खानपामळवाथी तेमने पोतानी पर्याय रखरखीत न करवू, अयोग्य वखते शयन कामसेवन लागे छे अने पंचेन्द्रियोना विषयोमा ति- करवू विगेरे घणी बाबतोमां अज्ञानपणुं वेच्छा संतप्त करे छे, तेथी तेओ अहींआ होय छे माटे आपणे हवे सुज्ञ भाईओनी त्यां फांफा मारती फरे छे, तेटलामां जो मददथी आवी घातक रीतो भांगवा तथा तेमने कुसंगतिनो सहवास थयो के तुरत दुःखी व्हेनोनुं दुःख दुर करी हळीमळीने अनिति करवा मांडे छे, तेमां वळी नव- धर्मोन्नति तथा जात्योन्नति करवा वळगीए युवक भाईओ हामी भरे छे. तो सारुं थायने ?
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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