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________________ जैन साहित्य संशोधक. [ खंड २ पोतानी टीकामां ज आपेलां छे; पण ते स्वोपज्ञ टीका उपलब्ध नथी; तेथी हरिभद्र, शीलांक अने हेमचन्द्र - के जेमणे ए स्वोपज्ञ टीकानो पोतानी टीकाओमां उपयोग कर्यो छे-तेमणे ए अवतरणो लधिला होवाथी आपणे ए टीकाओमांथी ज ते लेवानां छे. भाष्यना मूळमां ज जे अवतरणो आपला छे ते खास काळा अक्षरोमां आपवामां आव्यां छे. बाकीनां कया टीकाकारे कयां अवतरणो छे ते जुदी जुदी रीते बताववामां आव्यां छे. ए अवतरणो कया प्रन्थोमाथी लेवामां आवेलां छेतेनो कांई उल्लेख टीकाकारो करता नथी. तेथी जेकबना उपनिषद्वाक्यकोष अने बीजां तेवां वेद संबंधी पुस्तको उपरथी घणांकनां स्थळो खोळी काढवानो प्रयत्न कर्यो छे. ए तो चोकस छे के जे अवतरण जिनभद्रे लीथां छे ते घणां प्रमाणभूत छे अने तेमना वखतना ब्राह्मणो वादविवादमा ए वाक्यानी खूब चर्चा करता होवा जोईए. ब्राह्मणोनां दर्शनशाखोमां परस्पर विरुद्ध विचार दर्शावari ए वाक्यो उपरथी दरेक गणधरनो संशय उभो करवामां आव्यो छे. प्रसिद्ध उपनिषदोना मूळ पाठ। साथै सरखावतां ए वाक्योमा जे केटलीक भूलो नजरे पडे छे तेनुं कारण बिनकाळजीपूर्वक नो उपयोग करवामां आवेलो होवु जोईए. ×२, ५ ( १५५३ ). * ( दार्नास्तिकः ) * +93 एतावानेव पुरुषोऽयं यावानिन्द्रियगोचरः । भद्रे, वृकपदं पश्य यद् वदन्ति बहुश्रुताः ६ ॥ I पिब खाद व साधु शोभने यदतीतं वरगात्रि तन ते । न हि भीरु गतं निवर्तते, समुदयमात्रमिदं कडेवरम् ॥ ( भट्टोऽप्याह ) * * x आ अंक ते प्रो० ल्युमने पोताना मूळ निबन्धमा विशेषावश्यकभाष्यना जे ५ विभागो पाडपा छे तेना सूचक छे. एमी पहलो अंक प्रकरणने अने बीजो गाथानंबरने सूचवे छे. आ पछी जे कौंसमा आंकडा आपेल छे ते काशीनी यशोविजय जैनप्रन्थमालामा प्रकट थएल सटीक विशेषावश्यकभाष्यमांनी चालू गाथासंख्या सूचवे छे. मुद्रित प्रथम १५४८ मी गाथा ज्यां पूरी थाय छे त्यां उक्त प्रो० ना वर्गीकरण प्रमाणे प्रथम विभाग पूरो थाय छे अने १५४९ मी गाथाथी बीजो विभाग शरू थाय छे ते २०२४ मी गाथाए पूरो थाय छे. ए विभागमां गणधरवाद नामनेो विषय आवे छे अने तेनी कुल ४७६ गाथा के. * - ( ) आबा गोळ कौंसमां आपेला पाठो आवश्यकसूत्रनी हारिभद्री टीकामां आपवामां आवेला नथी; तेज [ ] आवा चौखुणा कौंसमा आपेला पाठो विशेषावश्यक भाष्यनी शीलांकाचार्यकृत टीकामा आपेला नथी; एम समज. + आ अंको आवश्यकनी हारिभद्री टीकामां दरेक गणधरना माटे जे शंका-समाधानात्मक अवतरणो आपवाम आवेला छेतेनो क्रमनिर्देश सूचवे छे. एमांनो मोटो अक्षर ए गणधरनी संख्या बतावे छे अने तेनी आगळ जे नानो अक्षर ते अवतरणनी संख्या जणावे छे. I आ चिन्हवाळा अवतरणो फक्त आवश्यक चूर्णिमा ज मळी आवे छे. * आ बने ठोको हरिभद्रकृत षड्दर्शनसमुच्चयना छेवटना लोकायत प्रकरणमा, श्लोक ८१-८२, छे ( मुद्रित पृ० ३०१, ३०४, कलकत्ता ) त्यां बीजा श्लोकनो प्रथम पाद' पिब खाद च चारुलोचने ' आ प्रमाणे छे. २. शीलांकाचार्यनी टीकामा 'यथाहुः' पाठ छे. ३. शी. टी. 'एके.' ४ चूर्णिमा 'एके आहुः' एटलो ज पाठ छे. ५. विशेषावश्यकनी हेमचंद्रकृत टीकानी केटलकि प्रतोमां आना ठेकाणे ' लोकोऽयं ' पाठ छे. ६. चू० शी० ह. हे० नी केटलीक प्रतोमा ' वदन्त्यबहुश्रुताः ' पण पाठ छे.
SR No.542003
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1923
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size20 MB
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