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________________ २५. ३१. ३५. ३९. अंक १] प्रो. ल्युमन अने आवश्यकसूत्र ६ठी गाथामां क्रमथी ए अग्यारेना मनमा जे जे बाबतनो संशय हतो तनी नोंध छे अने ते आ प्रमाणे छे जीवे' कम्मे तज्जीव' भूय' तारिसय बन्ध-मोक्खेय । देवा नेरइया' वा पुण्णे परलोग निव्वाणे' ॥६ (५९६) ___७. पहेला पांचे गणधरोने ५००-५०० शिष्यो हता; ६-७ ने ३५०-३५० अने छेल्ला ४ ने ३००-३०० शिष्यो हता. महावीर दरेकने नाम गोत्र पूर्वक बोलावे छे अने पछी तेना मनना संशयनुं नाम लई, 'तूं वेदना पदोनो अर्थ जाणतो नथी, तेनो अर्थ आ प्रमाणे छ' एम एक ज प्रकारनो जवाब आपे छे. गाथावार गणधरोनी उल्लेख आ प्रमाणे१७. पहेलो गणधर, जीव विषयक संशय. बीजो कर्म विषयक त्रीजो तज्जीव तच्छरीर वि. , चौथो पञ्च भूत वि० पांचमो सदृशोत्पत्ति वि० , ४३. बन्ध मोक्ष वि० ४७. सातमो देवसृष्टि वि० ५१. आठमो नरकसृष्टि वि० नवमो पुण्य विषयक दशमो परलोक वि० ६३. अग्यारमो , निर्वाण वि. आ अग्यारे गणधरोना मनना संशयनो महावीरे जे खुलासो कयों हतो तेनो उल्लेख मूळ नियुक्तिमां करवामां आव्यो नथी. निन्हवोनी हकीकतनी पेठे ज ए हकीकत पण निर्णय वगर ज आपवामां आंवली छ. चूर्णिमां फक्त पहेला गणधरना संशयनो खुलासा करवानो थोडोक प्रयत्न करवामां आव्यो छे. पण जिनभद्र आ बाबतनो घणो उत्तम विस्तार करे छे. ए विषय माटे तेमणे ४०० उपरांत गाथाओ लखी छे अने तेना विवरणमा घणी विशेष वातो आपी २. हरिभद्रसूरि आ विवरणमांथी घणांक अवतरणो पोतानी टीकामां ले छे अने एज अवतरणो विशेषावश्यक भाष्यमांना गणधरवादनी टीकाओना आधारभूत बने छे. वळी हरिभद्रनी टीका उपरथी किञ्चिद्गणधरवाद नामनो पण एक प्रन्थ लखायो छे, जेमां केटलोक वधारे विस्तार करवामां आवेलो होई वेदनां घणां खरां अवतरणो उपरांत छठ्ठी अने ते पछी आवती गाथामांनी हकीकतनुं पण निरूपण करेलुं छे. आनी श्लोक संख्या लगभग २५० जेटली के अने पूनाना पुस्तकभंडारमा नं० १६; २९१ वाळी प्रतना २० थी २३ मा सुधीना पानाओमां ए लखेलो छे. दशवैकालिकनी लघुवृत्तिमां पण संक्षेपथी आ विषय चर्चेलो छे. ___ आ विषयने लगता जे केटलांक वैदिक अने दार्शनिक अवतरणो जिनभद्र आपे छ अने तेमनो जे अर्थ जैन मतानुसार करे छे ते जाणवां जवां छे. आमांनां घणां खरां अवतरणो तो तेमणे फक्त
SR No.542003
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1923
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size20 MB
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