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________________ अंक १] महाकषि पुष्पदन्त और उनका महापुराण ७९ . X नक्षत्राधीशरोचिप्रचयशुचिरोहामका निकेतो, निर्णाताशेषशास्त्रास्त्रिदशपतिनुताशेषवित्पादभक्तः। भ्राता भव्यप्रजानां सततमिह भवाम्भोधिसंसारभीरु नीतिज्ञो निर्जिताक्षः प्रणयविनयतान्नंदतान्नन्ननामा ।' प्राधान्तदानपरितोषितवन्धवृन्दो दारिद्ररौद्रकरिकुंभविभेददक्षः। श्रीपुष्पदन्तकविकाव्यरसाभितृप्तः श्रीमान्सदा जगति नंदतु नन्ननामा ॥२ गंधचे कण्हडणंदणेण प्रायई भवाइंकिय थिरमणेण । महु दोसु ण दिज्जा पुव्वे कइउ कइयच्छराय तं सुत्त लहई ।।' पावनिमुंभणि मुद्दाबंभणि, उअरुप्पणिण सामलवर्णिण । कासवगुत्ति केसवपुत्ति, जिणपयभात्त धम्मासति ॥ वयसंजुत्तं उत्तमसत्तं, वियलियसंकं हिमाणेकं। पहसियतुंडं कयणा खंडं, जियबुहसह कयजसहरकह ॥ जो श्रायण्णइ चंगउ मण्णा, लिहा लिहावा पढइ पढावइ । जो मणसावह सो नर पावइ, विहुणियघणरय सासयसंपय ॥ जणवयनीरसि दुरियमलीमसि, कयनिंदायरि दूसहि दुहयरि। पडियकवालए नरकंकालए, बहुरंकालए अइदुक्कालए ॥ पवरागारि सरसाहारि, सन्हइ चेला वरतंबोलइ । महु उवयारिउ पुण्णिप्पेरिउ, गुणभत्तिल्लउ णण्णमहल्लउ ॥ होउ चिराउसु वरिसउ पाउसु, तिप्पउ मेइणि धणकणदाइणि। विलसउ गोविणि गपउ कामिणि, घुम्मउ महल पसरउ मंगल ॥ सत्ति वियंभउ दुक्ख निसुंभउ, धम्मुच्छाहिं सहुनरनाहिं। सुह नंदउ पय जय परमप्पय, जय जय जिणवर जय भवभयहर ॥ विमलु सुकेवलणाणसमुज्जलु, मह उप्पजउ इच्छिउ दिजउ। मह अमुणंतइ कव्वु कुणंतइ, जं हीणाहिउ काइवि साहिउ॥ पत्ता-तं माइ महासह देवि सरासइ निहयसयलसंदेह दुह । महु खमहु भडारी तिहुयणसारी पुप्फयंत जिणवयणरुह ॥ २३ ॥ इयजसहरमहारायचरिए...............चत्यो परिच्छेओ सम्मत्तो ॥ छ । मंगलमस्तु । संवत् १३६० वर्षे आषाढ सुदि १३ शनौ अद्येह श्रीमहाराजाधिराज श्रीसुरत्राण महमदराज्ये दुर्गमंडप पडिगनायागे वगडी नामनि प्राग्वाटवंशीय सा० भावडसंताने सा० मल्हौ पुत्र रामा भ्रात देल्हाकेन द्वाभ्यां जसोधरपुस्तिका लेखिता। सा चिरं नंदतु ॥ छ॥ शुभमस्तु । परिशिष्ट नं०६ (आदिपुराण की प्रति लिखानेवाले की प्रशस्ति ।) पणविधि रिसहेसह विणिहयपणसरु लोयालोय पयासणु । घरमुत्तिरमणवरु जम्ममरणहरु कम्ममहारि विणासणु ॥ मयनयणवाएससहरमिएसुसंवच्छरेसु पच्छइ गपसु। विक्कमरायहो सुइसेयपक्ख णवमी बुहवारे सचित्तरिक्ख ॥ गोवेगिरीणयरि णिउ डुंगरिंदै, हुउ पयपाडियसामंतर्विदु। 1 यह पद्य तीसरे परिच्छेद के प्रारंभ में है। २ यह पद्य चौथे परिच्छेद के प्रारंभ का है, परन्तु बम्बई और पूने की दोनों प्रतियों में नहीं है। छपी हुई भाषावली प्रति में है । ३ यह पद्य बम्बई की प्रति में नहीं है। ४ मद-नयन-वाण-शशधर मितेसु, अर्थात् वि. संवत् १५२१ । ५ ग्वालियर-गोपाचल । ६ दूंगर सिंहराजा ।
SR No.542003
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1923
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size20 MB
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