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________________ २८ ] जैन साहित्य संशोधक [खंड २ सांवत्सरिक पत्र पंक्ति ३० साः पेमन, संः नेतसी " " " ३३ साः षेतसी " " ३४ साः नेतसी, संः रीषभदास " " " ३५ " रीषभदास सोनी १०. प्रशस्ति के समय के संबंध में यह बात बडी ध्यान देने योग्य है कि प्रशस्ति में तो साफ तौर पर वैशाख शुदि ३, विक्रम सं० १६७१ गुरुवासर ( बृहस्पतिवार ) लिखा है परंतु मूर्तियों के लेखों में वैशाख शुदि ३ विक्रम सं. १६७१ शनि ( सनीचर वार ) लिखा है 1 । यह ऐसा विरोध है कि इस के लिये कोई हेतु नहीं दिया जा सक्ता; क्योंकि एक ही स्थान पर एक ही तिथि में वारभेद कैसे हो सक्ता है । यदि तृतीया वृद्धि तिथि होती तो भी कह सक्ते कि वृहस्पति वार की रात्रि के पिछले पहर में और शनि को दिन के पहिले पहर में तृतीया थी। मगर तृतीया वृद्धि तिथि न थी जैसा कि इंडियन् कैलेंडर में दी हुई सारिणी ( Tables ) के अनुसार गाणत करने पर गत संवत् ( Expired ) १६७१ वैशाख सुदि ३ शनिवार २ अप्रैल सन् १६१४ (Old Style ) को आती है और उस दिन वह तिथि १७ घडी के अनुमान बाकी थी । रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से १३ घडी पीछे लगा । वैशाख वदि १३ ( अमान्त मासों से चैत्र वदि १३ ) वृद्धि तिथि आती है । ११. प्रशस्ति में दी हुई अंचल गच्छ की पट्टावलि से ज्ञात होता है कि उस गच्छ के प्रवर्तक आचार्य, श्री आर्यरक्षित सरि, भगवान महावीर स्वामी से ४८ वें पट्ट पर बैठे थे और श्री कल्याण सागर मार गच्छ के १८ वें आचार्य थे। अंचल गच्छ की पट्टावलि डा. भांडारकर और डा. ब्यूलर ने भी छापी है। इन में डा. भांडारकर तो पांचवें आचार्य श्री सिंहप्रभ सरि का नाम छोड़ गए हैं 3 और डा. ब्यूलर छठे आचार्य श्री अजितसिंहसूरि अपरनाम श्री जिनसिंह सूरि का नाम छोड़ गए हैं 4 । हालां कि जिन आधारों परसे उन्हों ने यह पट्टावलि छापी है उन में साफ़ तौर पर उक्त दोनों आचार्यों के नाम यथास्थान दिये हुए हैं। 5 1 जैन लेख संग्रह, लेख नं. ३०८-११ " श्री मत्संवत १६७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ शनौ " -2 The Indian Calendar dy Sewel and Balkrishna Dikshit, 1896. 3 Report on the Search for Sanskrit manuscripts for the year 1883-84 Bomday 1887 p. 130 4 Epigraphia Indica p.39 5 भांडारकर-उक्त पुस्तक पृष्ठ ३२१ ४८ श्रीआर्यरक्षितसूरिः चंद्रगच्छे श्रीअंचलगच्छस्थापना शुद्धविधिप्रकाशनात् सं. ११५९ ४९ श्रीविजयसिंह सूरिः ५० श्रीधर्मघोष सूरिः - ५१ श्रीमहेंद्रसिंह मूरिः ५२ श्रीसिंहप्रभ सूरिः ५३ श्रीअजितसिंहसूरिः पारके चित्रावालगच्छतो निर्गता सं. १२८५ तपगच्छमतं वस्तुपालतः गच्छस्थापना
SR No.542003
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1923
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size20 MB
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