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________________ अंक 1 डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना थी वधारे प्रसिद्ध छ; तेओ, ज्यारे बौद्ध धर्म स्थपाई रह्यो आ विचारोनुं जैन प्रतिबिंब उत्तराध्ययनना २९ मा हतो त्यारे एक महत्त्वशाली संप्रदाय तरीके क्यारनाए अध्ययनमा मळी शके छ:-'तपथी मनुष्य कर्मने छेदी प्रसिद्ध थई चुक्या हता. परंतु हजी ए प्रश्ननु निराकरण शके छ २७. ' 'योगना त्यागथी अयोगपणुं प्राप्त थाय छ; थq बाकी रह्यं छे के-ए प्राचीन निर्ग्रन्थोनो धर्म, ते कर्म रोकवाथी ते नवीन कर्मने ग्रहण करी शकतो नथी खास करीने वर्तमान जैनोना आगमो अने बीजा ग्रंथोमां अने पूर्व ग्रहण करेला कर्मोनो क्षय करे छे. ३७' आ जे वर्णयेला छे ते ज हतो, के सिद्धान्तो पुस्तकारूद थया प्रकारनी प्रवृत्तिनी बे अन्तिम दशाओ (सूत्र ७१ अने त्यां सुधीना समयमां घणो रुपान्तरित थई गयो हतो. ७२ मां ) वर्णवामां आवेली छे. अने वळी. अध्ययन आ प्रश्ननु निराकरण करवा माटे, अत्यार सुधीमा ३२, गाथा ५, ७ मां आवती नीचेनी हकीकत वाचाए प्रकट थएला बधा बौद्ध ग्रंथोमां, जेमने आपणे सौथी छीए:- जन्म अने मरणतुं कारण कम छ अने जन्म जना समजीए छीए तेमांथी जैन निगण्ठो, तेमना सिद्धा. अने मरण ए ज दुःख कहेवाय छे.' मा उपरांत बाजा न्तो अने तेमना धार्मिक आचारोना विषयमा जेटलां पण उपरना अर्थने मळती ३४, ४७, ६०, ७३, ८६ प्रमाणो जडी आवे ते बानो ऊहापोह करवो जोईए. अने ९९ भी गाथानो संक्षिप्त अर्थ नीचे प्रमाणे छ:____ अंगुत्तरनिकाय ३,७४ मां, वैशालीना लिच्छविओ- 'परंतु जे मनुष्य इंद्रियोना विषयोथी अने मानसिक मांनो अभय'' नामे विद्वान राजकुमार निगण्ठोना केट- लागाणीओथी आनो अर्थ बौद्ध तत्त्वज्ञाननी 'वेदना' लाक सिद्धान्तोनुं नीचे प्रमाणे वर्णन करे छे:-'भदन्त! ना अर्थ साथे घणो ज मळतो आवे छे] उदासीन रहे निगण्ठ नातपुत्त जे सर्वज्ञ अने सर्वदशी छे, जे संपूर्ण छ तेने शोक स्पर्श करी शकतो नथी. जो के ते संसारमा ज्ञान अने दर्शनथी संपन्न होवानो ( आ आगळ जणा- मौजुद छे तो पण ते दुःख परंपराथी, जेम कमलनुं पान वेला शब्दोमां) दावो करे छे के " चालतां, उमतां, पाणीथी अलिप्त रहे छे तेम, ते मनुष्य पण अखिन्न ऊंघतां अने जागता हुं सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छु ” ते रहे छे. ' जुना कर्मोनो तपस्या वडे नाश थवानुं प्ररूपे छे. अने आ सिवाय बौद्ध ग्रंथमां, नातपुत्त सर्वज्ञान अने सर्व संवरद्वारा नवां कर्मोने रोकवानो उपदेश आपे छे. ज्यारे दर्शन प्राप्त करवानो दाबो करे छे–ए प्रकारनुं जे कथन कर्मनो क्षय थाय छे त्यारे दु:खनो क्षय थाय छे. ज्यारे छे तेने स्पष्ट करवा माटे प्रमाण आपवानी जरूर नथी. दुःखनो क्षय थाय छे त्यारे वेदनानो अंत आवे छे. ज्यारे कारण के आ तो जैन धर्मन खात एक मौलिक मंतव्य वेदना मटशे त्यारे सर्व दुःखनो क्षय थशे. आ रीते ज्यारे ज छे. पापनो पूरो ध्वस थशे त्यारे मनुष्य वास्तविक मुक्ति निगण्ठोना सिद्धांत विषयक बीजी वधारे माहिती मेळवशे." महावग्ग ६, ३१ ( S. B. E, पु. १७, पृ. १०८) १४ आ नामना, स्पष्टरीते, बे पुरुषो मळी आवे छे. बीजो अभय आदिमांथी मळी आवे छे. ए स्थळे सीह"नुं एक वृश्रेणिकनो पुत्र हतो अने जैनोनो सहायक हतो. तेना जैनोना सूत्रो तेम ज कथाओमा उल्लेख थएलो छे. मज्झिम निकायना ५ मां तान्त आपेलुं छे. ते सीह लिच्छवि ओनो सेनापति हतो ( अभय कुमार ) सुत्तमा एवं वर्णन छे के निगण्ठ नातपुत्ते तेने बु- अने नातपुत्तनो उपासक हतो. ते बुद्धने मळवा इच्छतो द्धनी साथ वाद करवा मोकल्यो हतो. प्रश्न एवो चालाकी भरेलो हतो परंतु नातपुत्त क्रियावादी होई बुद्ध अक्रियावादी तैयार करवामा आध्यो हतो के बुद्ध तेनो गमे तेवा हकार अगर हतोतेथीतेनी पासे जवानी तेने ना कहेवामां आवती नकारा नवाब आपे पण ते स्वविरोध वाळा न्यायशास्त्र प्रसिद्ध दोषमां रूपडाया वीना रहे ज नहि. परंतु आ युक्ति सफळ थई नहिं १५' सीह ' नु नाम भगवती [ कलकत्ता आवृत्ति, पृ. १२६७ अने परिणाम तेथी उलटुं ए आव्यु के अभय बुद्धानुयायी थई गयो. जुओ होर्नल नी उवास गदसाओ, परिशिष्ट, पृ.१०] मां महावीआ वर्णनमां नातपुत्तन। सिद्धांत उपर प्रकाश पाडे एवं कांई तत्त्व रना एक शिष्य तरीके पण मावेलुं छे,परंतु ते साधु होवार्थ महावनथी.. ग्गमा आवता आ नाम साथे तेनी एकता बतावी शकायतेम नथी।
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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