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________________ जैन साहित्य संशोधक [ खंड १ आप्यां छे. प्रो. वेबरे पोते तैयार करेला बर्लिनना हस्तलेखोना मांना घणाक महत्त्वना शिलालेखो बहार पाड्या छे' विस्तृत सूचिपत्रमा संपूर्ण जैन साहित्यनु साधारण अवलोकन एम्. ए. बार्थे जैनधर्म विषयक आपणा ज्ञाननी समालोकर्यु छे. तेम ज तेमणे जैन सूत्रो उपर एक अति विद्वत्ता- चना करी छे". बुल्हरे पण एक नानो निबंध लखी तेवी पूर्ण मोटो निबंध पण प्रकट कर्यो छे. प्रो. ल्युमने आलोचना प्रकट करी छे', अने छेवटे भांडारकरे संपूर्ण बळी जैन वाङमय अने शास्त्रना विकासनं सारु अध्ययन जैन धर्मनी एक महत्त्वनी अने घणी उपयोगी रूपरेखा कर्य छे. तथा केटलीक जैन कथाओ अने तेना आलेखी प्रसिद्धिमा मुकी छे'. आ रीते, आपणा जैन ब्राह्मण अने बौद्ध कथाओ साथेना संबंधनी तपासणी धर्म विषयक ज्ञानमा थएला वधाराआए (जेमांना पण करी छे", श्वेताम्बर संप्रदायना जुना इतिहासनी मा- मात्न खास नोंधवा लायक ग्रंथोनो ज में अहिं उल्लेख को हिती आपनारो एक महत्त्वानो ग्रंथ मे पण संपादित छ ) आ आखा विषय उपर एटलुं बंधु अजबाळू पाड्यु कर्यो छे; तथा तेमना केटलाक गच्छोनो इतिहास होर्नल छे के जेथी हवे मात्र कल्पनाने आ विषयमा घणो ज थोडा अने क्लाट द्वारा जाहिरमां आव्यो छ. आमांनो छल्लो अवकाश रहेशे. अने ऐतिहासिक तेम ज भाषाविज्ञानात्मक विद्वान ( क्लाट ) जे अत्यारे आपणी वच्चे मौजुद नथी, साची पद्धति, ते साहित्यना सघळा भागोने लागु पाडी तेणे सघळा जैन लेखको अने ऐतिहासिक पुरुषोनो एक शकाशे. तेम छतां, हजी केटलाक मुख्य प्रश्नोना खुलासा जीवन चरित्रात्मक महान् नामकोष ( Onomasticon) करवा बाकी रह्या छ, तथा जे निराकरणो आ अगाउ थई तैयार कर्यों छे अने जेना केटलाक नमुना प्रकट पण थया गयां छे ते हजी बधा विद्वानोने मान्य थयां नथी; तेथी छे. होफ्रेट बुल्हरे सर्वविद्याविशारद एवा प्रसिद्ध वि आ सुअवसरनो लाभ लई आनंद पूर्वक हुं अहिं केटद्वान् हेमचंद्रनुं विस्तृत जीवन चरित्र लख्यु छे'. वळी लाक विवादग्रस्त मुद्दाओनुं स्पष्टीकरण करवा इच्छु छु. आ मुद्दाओना खुलासाओ माटे आज पुस्तकमां भाषान्ततेमणे घणाक जुना शिलालेखोना अर्थो पण प्रसिद्ध कर्या रित एथला सूत्रोमांथी घणी किंमती सहायता मळी शके छे. डॉ. फुहररे मथुरामाथी खोदी काढेला कोतर कामोनुं तेम छे. . . विवेचन कर्यु छे , अने मि. लेवीस राइसे श्रवण बेल्गोल __ ए बाबत तो हवे सर्व सम्मत थई चुकी छे के नातपुत्त ३ बर्लिन १८८८ अने १८९२. (शातपुत्र ) जे साधारण रीते महावीर अथवा वर्धमानना ४. Indische Studien पु. १६, पृ. २११ आदि. इ. मामे ओळखाय छे ते बुद्धना समकालीन हता. निगण्ठो ए. मां अनुवाद तथा जुदा पुस्तक रुपे, मुंबई १८९३. (निर्ग्रन्थो )१३ जे हालमां जैन अथवा आहेतना नाम५. Actes duVI Cougres International des Orientalistes, section Arieane पृ. ४५९ ९. बेंगलोर १८८९. aer Wiener zeitschrift fur die Kunde des 90. The Religions of India. Balletin Morcenlandes पु. ५ अने ६. वळी,जर्नल आफ दी जर्भन des Riligions de l'Tande, 1889.94 ओरिएन्टल सोसायटी, पु. ४८. 99. Uber die Indische Secte der ६. हेमचंद्राचार्य रचित परिशिष्ट पर्व, कलकत्ता. Jainas, Wien 1881. ७. Denkschriften der philos-histor. १२. रीपोर्ट सन १८८३-८४. (Maana dan-Kaicar Andammind १३. निगण्ठ ए स्पष्टरूपे मूळ रूप ज होय एम जणाय छे. Weissens chaften, Vol. XXXVII, p.171ff कारण के अशोकना शिलालेखोमां, पालीमां, अने केटलीक वसतें जैन ग्रन्थामां पण ए ज रूप मळी आवे छे. पण आ त्रणे बोली6. Wiener Zeitschrift fur die Kunde ओना स्वरशास्त्रना नियमो प्रमाणे तो तेनुं वधारे वास्तविक रूप des Morgenlaudes, Vols II and III. निग्गन्थ ' एबुं थर्बु जोईए. अने आq रूप जैन ग्रंथामा स्वीकाEpigraphia Indica, Vols. I and II. रेलु पण मळी आवे छे.
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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