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________________ जैन साहित्य संशोधक। [खंड जैनकी मूर्ति के आसपास उत्पन्न होगए और इसी का- ण्डराय था । एक दिन जब राजा अपनी सभा मन्त्रीरण मूर्तिका नाम कुक्कुटेश्वर पड़ गया " २०. योंके सहित विराजमान था, एक पथिक व्यापारी आया इन लोकप्रसिद्ध कथाओंके द्वारा हम समझ सकते हैं कि और उनसे कहा कि उत्तरमें पौदनपुरी नामक एक नगर उन वल्मीकमयी मूर्तियों का क्या भाव है जिनसे सर्प है जहां भरत द्वारा स्थापित बाहुवली अथवा गोम्मटकी निकल रहे हैं, तथा श्रवण बेलगोल कर्कल और येनूर एक मूर्ति है । यह सुनकर भक्त चामुण्डरायने उस पविगोम्मटेश्वरकी मूर्तियों में लिपटी हुई लताओंका क्या ता-- त्र मूर्तिके दर्शन करनेका विचार किया और घर जाकर त्पर्य है ? " तीनों मूर्तियों में ये सब बातें एक समान हैं अपनी माता कालिकादेवीसे यह वृत्तान्त कहा, जिसपर और उनसे यह भाव प्रकट होता है कि, वे तपस्या में उसने भी वहां जानेकी इच्छा प्रकट की | चामुण्डराय ऐसे पूर्ण लीन होगए हैं कि उनके पैरों पर वल्मीक लग तब अपने गुरु अजितसेनके पास गया, जो सिंहनन्दिका जाने; और शरीरमें लताओंके चिपट जाने पर भी सां- उपासक था । उसने सिंहनन्दिके सन्मुख यह प्रतिज्ञा की सारिक विषयोंपर उनका ध्यानभंग नहीं होता । " ३० कि जब तक मैं बाहुबली मूर्त्तिके दर्शन न कर लूंगा तब चामुण्डरायकी मूर्त्तिके स्थापनका वृत्तान्त । तक मैं दूध न ग्रहण करूंगा | नेमिचन्द्र अपनी माता बाहुबली चरित्र नामक एक संस्कृत काव्य में चामु- और अनेक सैनिकों एवं सेवकोंके सहित चामुण्डराजने ण्डराय-द्वारा स्थापित गोम्मटेश्वरकी मूर्तिकी स्थापना- यात्रा प्रारंभकी और विन्ध्यगिरि (श्रवण बेलगोल) में की कथा इस प्रकार वर्णित है । जा पहुंचा । रात्रिमें जैनदैवी कुष्माण्डी (बाईसवें तीर्थबाहुबली चरित्रकी कथा । कर नेमिनाथकी यक्षिणी दासी) ने चामुण्डराज नेमिद्रविड देशकी मधुरा नगरी ( वर्तमान मदुरा ) में चन्द्र और कालिकाको स्वप्नमें दर्शन दिया और कहा राजमल्ल नामक एक राजा था, जिसने जैन सिद्धान्तों के कि पौदनपुरीको जाना अत्यन्त कठिन है, परन्तु प्रचारका उद्योग किया और जो देशीय-गण" के इसी पहाडीपर पहिले पहिल रावण द्वारा स्थापित बाहुसिंहनन्दिका उपासक था । उसके मन्त्रीका नाम चामु- बलीकी एक मूर्ति है । और उसके दर्शन तभी हो २९ “ घृत-जयवाहु-बाहुबलिकेवलि-रूपसमान- सकते हैं, यदि एक सुवर्ण-बाणसे इस पहाडीको फाड पञ्चविंशति-समुपेत-पञ्चशतचापसमुन्नतियुक्तम् अप्प दिया दिया जाय । स्वप्नके अनुसार, दूसरे दिन चामुण्डरायने तत्-प्रतिकृतियं मनोमुददे माडिसिदं भरतं जिताखिल- दक्षिणाभिमुख पहाडीपर खडे होकर अपने घनुषसे एक क्षितिपतिचकि पौदनपुरान्तिकदोल् पुरुदेव-नन्दनम् । सुवण । सुवर्ण-बाण छोडा । तत्क्षण पहाडके दो टुकडे होगए चिरकालं सले तज्जिनांतिक-धरित्री-देशादोल लोकभी- और बाहुबलीकी एक मूर्त्तिके दर्शन हुए । चामुण्डरायने करणं कुक्कुटसर्पसंकुलं असंख्यं पुट्टि दल् कुक्कुटेश्वरना- तब उस मूर्तिकी स्थापना और प्रतिष्ठा की तथा उसके मन्......" ( देखो, एपि. कर्ना. मा. २, पृ. ६७.) पूजार्थ कुछ भूमि लगा दी । जब नृपति राजमल्लने यह ३० लु. रा. का, श्रवण बेलगोल, भूमिका पृ. ३३. वृत्तान्त सुना तो उसने चामुण्डराजको 'राय'की उपाधि ३१ जब नन्दी संघके जैन आचार्य सारे देशमें फैल गये, तब प्रदान की और उस मूर्तिकी नियमित पूजाके लिए उनके संघका नाम 'देशीयसंघ' हो गया। और भी भूमि प्रदान की । देखो बाहुबली चरित्रका निम्न श्लोक" पूर्व जैनमतागमाब्धिविधुवच्छ्रीनन्दिसंघेऽभवन् राजावली कथेके अनुसार कथा । सुज्ञानर्द्धितपोधनाः कुवलयानन्दा मयखा इव । देवचन्द्र-द्वारा रचित कानडी भाषाकी एक नवीन सत्सङ्गे मुवि देशदेशनिकरे श्रीसुप्रसिद्ध सति पुस्तकमें भी यही कथा वर्णित है, परंतु कहीं कहीं कुछ श्रीदेशीयगणो द्वितीयविलसन्नाम्ना मिथः कप्यते ॥" बातोंमें अन्तर है। उसमें लिखा है कि चामुण्डराय राजा
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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