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________________ आगरा संघनो सचित्र सांवत्सरिक पत्र (५३) उसता सालीवहण पातिसाही चित्रकार छै तेण तीण समै देष छै ईसाही ईण चिं(५४)त्र माहे भाव राष छै सु लेष देष प्रीछजोः उतता सालीवहण वंदणा विनवी छै प्रछ जो ) ईह श्रीः पजुसण श्रीसतर भेद पुजा १५ सनाथदीन ६१ तप मासषमण १॥ मासषम(५६) ण १। पाषषमण तथा अठाई तथा दवदसम दसम अठम बीजाही तप घणा हुआ छै. छमछरी पोसह त ९०१ सहमी वछल साः बंदीदासकैः चैमासा पाषी असटमी सदी सह ) मीवछल चाल छै पुजोजीका प्रसादथी अपरं ईह श्री जिन प्रासाद नवा संः चंदु करय छै (१९) प्रतीमा पीण माहासुदर हुई छै धणिनु पीणा प्रतीस्टाना घणार्ह छै श्रीपुजी जी आवै तथा (१०) श्रीआचारिजजी पधारतै जीणससणीना घणा उछाह होई सार संघना मनोरथ पैहचै ६१) पुजीजी क्रिपाकर पधारजोः महो उपाध्याय श्रीसोमविजै पीण नेडा छै पुजी जलदथी लषी छै वि(६२) चारी भला जाण तम लीषजो जीम पुजी लीष तिम परमाण लेष प्रसाद वैगा मकुलजो. (६३)ईभरमावादः पंः श्री: माहानंद ठण ३ छै दील: री जेठठण २ छैः पारोःगणसरतनह ठण २ पहली चै(६४) मासः पेरोजाबाद गणी षीमानंद रहथा विजा मतका आचारिज रहमाट: हीवक ते ते पाली (६५) पडः हीवै चैमास पेरोजाबादकी घेतनी चीता करजोः पहले कैतही सात परहथा तै सरब मडराष ( ६६ ) हीवै भीपु षेत पाली न रह तीम करजोः सावीकानी वंदणा विनवि छै ते पीछजो सही चाणजो. (६७) संः विमलादे बाः साहाजदे बाः मीरघ बाः जादव [पारमासहमनी वंदणा: अवधारजो (६८)वाई कपुर दे बाः लाछ बाः मोतास पयादी बाः जीवट दे १साः ताराचंद साः ताबेद साः मोहील (६९)मणीक दे बाः कवर .. बाः सीरदे. बाः भगत.. १ साः छीतु साः कासी सा वेणीदास (७०) बालादे वहुः मनोरथदे बाः गारबदे बाः राज १ साः सागर साः भैरू साःमणकचंद (७१) वहु केसरदे बाः होली वाः गरादे १ साः भोवाल सा: ढोला साः डगर (७२) पुजीजी प्रतिस्टा उपरी वैग पधारजो ईहना संघना उतकंठा पणी छै ऐकवार तुमार चरण (७३ ) देष समसत संघ संतोष पामः नहीतर महोउपाध्यनु आदेस देजो जीण सासणनी सो(७४) भा होई तीम करजो घण स्य लीषीअ पुजीजी ईहनी परचीता तुमन छे ते पीछजो (७५) संवतु १६६७ मीती कातीसुदी २ सुभदीने सोमवारे सुभं भवतुः लीः सीकहसा सुत. [उपरना लखाणर्नु हालनी भाषामां शुद्ध संस्कारी रूपांतर ] (१) स्वस्ति श्रीचिन्तामणिपार्श्वजिनं प्रणम्य श्री देवपाटण महानगरे शुभस्थाने, पूण्य आराध्य महात्मा, (२) उत्तम चारित्र पात्रशिरोमाण, कुमतान्धकार नभोमाणि, कलिकाल गौतमावतार, सरस्वतीकंठाभरण, ( ३ ) चउदविद्यानिधान, एक विध असंयमना टाळणहार, द्विविध धर्मप्ररूपक, त्रण तत्त्वना जाण, चार कषायना( ४ ) जीपक, पंचमहाव्रतना पाळणहार, छकायना पिता, सात भयना टाळणहार, आठ मदस्थानकना जीपक, (५) नववाढ विशुद्ध ब्रह्मचर्यना पाळणहार, दशविध श्रमणधर्म प्रतिपालक, अग्यार अंग बार उपांगना . जाण, . (६) तेर काठियाना जीपक, चऊद भेद जीवना प्ररूपक, पंदर परमाधार्मिकना मेदना जांण, सोलकला
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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