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( ६७ ) रहता है तब तक यह क्रम चलता है । बच्चा स्वयम् हमको बता देगा कि रखा हुआ क्रम यथार्थ है या नहीं । अबतक के आविष्कार से सामान्यतौर से बचे का विकाश कौन से क्रम से होता है वह निश्चित हो चुका है, और उसके श्राधार पर बालविकाश के साधनों को काम में लाने का क्रम भी निश्चित हो गया है। इसलिये इस क्रम को आविष्कार के तौर पर किसी भी स्थान पर काम में लाने से सिद्धान्त की हानि नहीं होती है, परन्तु यह समझ लेने का है कि यह क्रम किसी भी तरह का अभ्यास नहीं है अथवा कायदे की रचना नहीं है । एक बाद एक विकाश की स्वाभाविक भूमिका पर चढ़ने के लिये जिन सिढ़ियां की जरूरत है वे सिड़ियों के रूप में साधन का क्रम है और यह क्रम कायदों से जाना जा सकता है । अमुक कक्षावाले बच्चे का विकाश अब किस सीढ़ी से शुरू करना और उसके लिये उसके पास कौनसा साधन रखना आदि ।
बच्चों के सामने साधन किस तरह रखना आदि के विषय में विस्तार से कहने का यह स्थान नहीं है यहां पर इसके विषय में थोड़ी सा विचार किया गया है । बच्चे की मानसिक उम्र ध्यान में लेकर उसके अनुकूल साधन उसके पास काम में लाने को रखने चाहिये । या तो बच्चा साधनों का उपयोग ही नहीं करेगा अथवा साधनों का यथार्थ उपयोग कर थोड़ी ही देर में साधन छोड़ देगा अथवा उन साधनों पर तल्लीन होकर उन पर पुनरावर्तन करता रहेगा । यदि बच्चा साधनों को काम में ही न लें तो समझना चाहिये कि या तो बालक की उम्र साधन के लिये योग्य नहीं है अथवा बच्चा उनका उपयोग नहीं जानता है, अथवा बच्चे की उम्र अधिक हो जाने से वह साधन में श्रानन्द नहीं मानता है अथवा बच्चे के पास रखा हुआ साधन ठीक नहीं है । यदि बच्चा साधन के लिये योग्य उम्र का न मालूम हो तो उसकी उम्र के लायक दूसरा साधन रखना पड़ता है । यदि ऐसा मालूम हो कि वह उपयोग नहीं समझता है तो उसको उपयोग समझाना पड़ता है। यदि ऐसा मालूम हो कि उसकी उम्र बढ़ गई है तो बड़ी उम्र के बालकों के योग्य साधन देने पड़ते हैं और यदि ऐसा मालूम हो कि साधन ही ठीक नहीं है तो उसको दूर करना पड़ता है। कभी २ तो बच्चा शारीरिक अस्वास्थ्य की वजह से साधन का उपयोग नहीं करता है जब ऐसी स्थिति मालूम हो तब बच्चे को डाक्टरी मदद देने की आवश्यक्ता होती
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