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(६८) है। क्रम में क्रम की बहार, योग्य उम्र अथवा अयोग उम्र में यदि बालक साधन काम में लाने में तल्लीनता का अनुभव करें और उस पर पुनरावर्तन किया ही करे तो उसमें किसी भी तरह की रोक नहीं करनी चाहिये । किसी भी समय बच्चे को उत्तेजित नहीं करना चाहिये । . साधन रखने के समय में यह एक बात मी धान रखने की है कि प्रत्येक साधन को काम में लाने के लिये बच्चे के मानम की निश्चिम उम्र में योग्य समय आता ही है। इस योग्य समय साधन नहीं रखा जाय और बच्चा उसका उपयोग न करे तो इन साधनों से मिलते लाभों में से बच्चा जीवनभर वंचित रहता है। अमुक समय ही महत्व का है वे उस समय के जाने के साथ ही बिन उपयोगी हो जाते हैं इसलिये साधन रखने की उम्र का खास विचार शिक्षक के समीप रहने की जरूरत है । अमुक शक्तियों का अक विकाश समय उत्तम में उत्तम होता है यह उत्तम में उत्तम समय निरर्थक जाय तो फिर विकाश आधा, बेसूर और कम होता ही जाता है। साधन रखने का समय निश्चित न हो सके परन्तु शिक्षक उसको ढूंढ़ सकता है यह विषय अनुभव और आविष्कार
- साधन के लिये जब अधिक बातें ध्यान में रखने की है तब एक दो बातें भी ध्यान में रखने जैसी हैं। मोन्टीसोरी शाला में साधन के व्यवस्था का विचार भी अगत्य का है वह श्रेणीवार, क्रमवार साधन को बरावर रखने की व्यवस्था को पोषण देता है और काम करते वक्त और काम करने के अन्त में वापिस व्यवस्थित साधन जमाने के लिये शिक्षक को सरलता हो जाती है। फिर एक बात यह है कि शिक्षक को बालक बनकर सब साधन स्वयम् काम में लाकर देखने की जरूरत है। सिर्फ साधनों का परिचय काफी नहीं है उनको काम में लाने का ज्ञान भी काफी नहीं है। शिक्षक को स्वयं प्रत्येक साधन बालक के सरा काम में लेना चाहिये और उसको बच्चे की गति और वति से काम में लाकर देखना चाहिये। एक ही दफा नहीं परन्तु वार २ दुहराना भी नहीं भूलना चाहिये । जब शिक्षक ऐमा करेगा तब उसको बच्चे की असली दृष्टि प्राप्त होगी तब ही साधारण दिखनेवाली चीजों में बच्चे को कितना अधिक भानन्द प्राता है उसकी कल्पना उसको अच्छी तरह पा सकेगी।
- अनुवाद क-- देवी शेष मग्ने । . .