________________
(E) क्रिया शक्ति और बुद्धि की यथाक्रम शिक्षा का प्रबन्ध रचने में ही बच्चे को आज्ञांकित अथवा संयमित बनाने की योजना है। इस पद्धति में जो २ साधन रखे गये हैं उनमें का हरएक से कार्य करने में क्रिया शक्ति का विकाश है जब बचा कोई भी क्रिया भिन्न २ स्नायुओं के सहकार से पूर्ण करता है अथवा तो क्रिया करने के आवेश को रोकता है तब वह अपनी क्रिया शक्ति को शिक्षा देता है। ध्यान के खेल में अक्सर क्रियाओं को रोकना पड़ता है। जब तक उसको कुछ नहीं कहा जाय तब तक शान्ति से बैठने में, पूछा जाय तब धीरे २ चलने में
और सम्हाल से बैठने उठने प्रादि में निष्क्रियता की क्रिया शक्ति बढ़ती है। क्रिया करके अथवा क्रिया करने के आवेश को छोड़ कर दोनों तरह से क्रिया शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
गणित में भी क्रिया शक्ति की तालीम मिलती है । जब बच्चे को संख्या की चिट्ठी लेकर लिखे अनुसार चीजें लाना पड़ती है तब उसको अपनी इच्छा पर काबू रखना पड़ता है। बच्चे को बहुत से खिलोने लेने की इच्छा होती है परन्तु चिट्ठी के कारण उसकी वृत्ति संयमित होती है परन्तु जब उस के झीरों की चिट्ठी आती है तब उसको निष्क्रिय होकर बैठना पड़ता है। झीरों का अर्थ सीखने के लिये जो पाठ दिया जाता है उसमें इस तरह की क्रिया शकि को बहुत विकाश मिलता है। जब बच्चे से बिन्दु (झीरों) पर अनुक्रम से बुलाया जाता है तब उसको हरएक बिन्दु पर चुंबन लेने का कहा जाता है तब बहुत अच्छा खेल होता है । बच्चा स्थिर और शान्त रहने का बहुत प्रयत्न करता है परन्तु यहां पर भी क्रिया शक्ति की शिक्षा का समावेश है। जब बच्चे खाने बैठते हैं तब उनको परोसने में भी बहुत तरह से क्रिया शक्ति खिलती है।
_ क्रिया अथग क्रिया रोध करना पड़े और इस तरह की तरह २ की प्रवृत्तियों करने में ही क्रिया शक्ति को बल और विकाश मिलता है। बालागृह के सब खेलों द्वारा क्रिया शक्ति खूब खिलती है । बालागृह में बच्चा व्यवस्था, सौन्दर्य दृष्टि, इन्द्रिय विकाश, लेखन और पढ़ना सीखता है । इतना नहीं परन्तु इसके पीछे सच्ची शिक्षा तो क्रिया शक्ति के विकाश की है। प्रत्येक पल वह अपनी इस शक्ति को बढ़ाता ही जाता है यही क्रिया शक्ति नियमन को प्राण