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( 1 ) उस वक्त हमें उनके बीच में नहीं पड़ना चाहिये और न अनावश्यक साधन उन के ऊपर डाल कर उनको करने का फर्ज नहीं डालना चाहिये । एक मंडिकल कॉलेज के विद्यार्थी ने ढाई वर्ष के बच्चे को टंबल पर पड़ा हुआ लिखने का लम्बचौरस पेंड, दवात रखने की गोल बैठक आदि से खेलता देख रहा था इसी बीच में उसके मा और बाप ने बालक को एक दम खिंच लिया और लड़ने लगे और साथ ही साथ यह भी कहने लगे कि बड़ा तोफानी है इसी तरह हम बालकों के ज्ञान के लिये जो लत हैं या ढूंढते हैं तब हम उनको डराते हैं। बालक में पदार्थ उठ कर देखने की जो स्वाभाविक वृति है जो उसको योग्य तौर से शिक्षित करने की जरूरत है। ऊपर कहे अनुमार बच्चा लिखने के लम्बचौरस पेंड पर अथवा तो दवात की गोल बैठक पर अथवा तो दूसरे पदार्थों पर आता है तब मजबूत मनुष्य हरवत दखल करते है इसलिये बालक उनको लेने का प्रयत्न करता है परन्तु बड़ों के सामने उसका कुछ न चलने से भाखिरकार निराश और निष्फल होकर क्रोधायमान हो जाता है परन्तु उसका कुछ न चलने से पड़ा रहता है। इस वक्त उसके प्राण बल का सच्चा व्यय होता है। जब बालक बुद्धि और शरीर को घड़ने का प्रयत्न करता है तब उस तोफानी कहा जाता है इस तरह की सब क्रियाएं न करने देने से बालक को माराम मिलेगा यह उनके मा बाप की धारणा हो तो वे भूल करते हैं। सच्चा प्राराम तो इच्छानुसार विकाश के मददगार साधनों को काम में लाने में है।
हम ख्याल करते हैं कि बच्चे को आज्ञा देकर कोई भी काम कराया जाय तो बच्चे की क्रिया शक्ति खिलेगी और उसके परिणाम स्वरूप उसमें नियमन मायगा। हमारा यह भ्रम है कि बालक की क्रिया शक्ति हुक्म माफिक काम करने से खिलती है । और हम मानते हैं कि यह काम फरजीयात हो सकता है इस फरजीयात काम को हम लोग बच्चे की आज्ञाधीनता के नाम से पहिचानते हैं। मुख्यत: छोटा बच्चा हमको आज्ञांकित मालूम होता है वह जब चार पांच वर्ष का हो जाता है तब वह बहुत जिद्दी हो जाता है कि हम उसको आज्ञांकित बनाने में करीब २ निष्फल और निराश हो जाते हैं और उस दिशा में हम अपना प्रयत्न छोड़ देते हैं। हम नियमन के गुणों की बालक के पास प्रशंसा करते हैं। हमारी रूढी अनुसार हम बालक में ये गुण साफ तौर पर चाहते हैं तो भी हम महा मुसीबत