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( ७८ ) बिना कारण श्रम उठाता है ऐसा कह कर हम लोग बिना कारण ही बच्चों के काम में दखल करते हैं और एक ही क्षण में उसके बजाय काम कर देते हैं उसी के अनुसार बच्चे को कपड़े पहिनाते हैं और नहलाते हैं उसको जो २ पदार्थ फिराने पसन्द हैं वे उसके हाथ में से ले लेते हैं। हम उसको परोसते हैं और खिलाते हैं यहां पर भी हम इसी मान्यता की भूल करते हैं कि कोई भी काम करने में इस काम का उद्देश है । इस तरह बच्चों के बजाय काम करके हम उनको अपंग बनते हैं और फिर हम ही उनको अयोग्य और काम को नहीं सीखने वाले कहते हैं । उत्तम में उत्तम उद्देश से भी जो दसरे पर अधिकार भोगता है उन्ही की न्याय पद्धति ऐसी होती है कि जिस तरह मजबूत प्राणी जीने के हक के लिए लड़ता है त्यों बच्चा जिसका अन्तर आवेश जो कि नैसर्गिक प्रेरणा है जिसका वह सन्मान करने को दौड़ता है उसका जो कोई विरोध करता है उनके सामने लड़ता है और रोकर, शोरकर या हाथ पैर जोर से हिलाकर बताता है कि उसके उपर जुल्म हो रहा है । उसके जीवन के मार्ग में से जो कोई उसको दूर करते हैं वे उसको नहीं समझते हैं और मदद करने के भ्रम में जीवन के सच्चे मार्ग से उल्टा उसको वापिस दकेलते हैं वे उसको लूटेरा, बलवा खोर और किराये का टटू गिनते हैं । तो भी बच्चा अपने ऊपर होने वाले जुल्म के सामने अपना बचाव करता है तब उसको हम एक तरह का तोफानी गिनते हैं। वे मानते हैं कि छोटे बालक स्वभाव से तोफानी होते हैं परन्तु ख्याल करो कि हम लोग जादूगर के जाल में फंस गये हैं और हम सदा के माफिक काम करते हैं तो भी वह जादगर हमला करता हो उस तरह मा जाता है और हम लोगों को कपड़े के अन्दर शीघ्रमय भर देता है अथवा हमें शीघ्र कपड़े पहिना देता है हमें ऐसी झड़प से खिलाने लगे कि गले उतारना मी मुश्किल हो जाय । संक्षेप में हम जो कुछ करते हैं वह उसको आँख पलक के समय में बदल देता है। और हमें केवल निष्क्रिय और निवार्य बना देता है। उस समय हमारी क्या दशा होती है ? हमारे ऊपर माई हुई आपत्ति में इम अपने बचाव के लिये शोरगुल करते हैं और इस राक्षस समान जागर के सामने
हो जाते हैं तब वे कहेंगे कि जब उत्तम उद्देश्य से इन लोगों की सेवा उठाते हैं . तब वोफानी, उद्धत और कुछ भी नहीं सीखनेवाले कहते हैं कुछ इसी तरह का
बच्चों और बड़ों के बीच में चलता है। बच्चा विकाश के मददगार साधन इंडता है