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तरह से जानते हैं उन कहानियों को बार २ दूसरों को कहना चाहते हैं। इन कहानियों में हर समय कोई नवीनता नहीं होती है तो भी हम बार २ कहते हैं। प्रभु की प्रार्थना अनेक वार करने पर भी बार २ उसको करने में आनन्द का अनुवभ होता है और वह हमेशा नई प्रतीत होती है। दो प्रेमियों को परस्पर अगाध प्रेम की इतनी अधिक श्रद्धा होती है तो भी जब तक उसका अन्त न हो तब तक वे एक दूसरे को चाहते हैं।
इस तरह नियमन में पुनरावर्तन का स्थान महत्व से भरा हुआ है। जब बच्चे पुनरावर्तन करने की स्थिति पर पहुंचे तब समझना चाहिये कि वह स्वयम् विकास के मार्ग पर है इसका बाह्य चिह्न स्वाधीनता अथवा नियमन है। बेशक सब बच्चे पुनरावर्तन करने में बराबर नहीं होते हैं। पुनरावर्तन का आधार अन्दर की आवश्यक्ता पर है। इस वक्त बाल विकाश में आवश्यक साधन बच्चे के पास रखने के हैं। यद्यपि अमुक आवश्यक्ता के समय विकाश का योग्य साधन उसके हाथ नहीं लगा और उसकी उम्र बढ़ती गई तो जिस योग्य क्षण में विकाश सम्भवित था वह जाता रहा इसलिये विकाश फिर कभी नहीं हो सकेगा। इससे अक्सर ऐसा होता है कि बच्चा उमर में बढ़ जाता है परन्तु विकाश में अधूरा रह जाता है प्रतएव यह नुकसान कभी मी बराबर नहीं हो सकता।
___ ज्यों नियमन आज्ञा से नहीं आता है त्यों शीघ्र २ प्रवृतिओं करने से अथवा प्रवृतिओं करने से नियमन नहीं आता है। नियमन विकाश का परिणाम है । विकाश क्रमशः और धीरे २ होने वाली क्रियाओं का फल है इसलिए बच्चे को अपनी इच्छित प्रवृतिओं और उसकी गति से कराने की पूर्ण अनुकूलता देनी चाहिये और बिना प्रयोजन बीच में नहीं आना चाहिये । ___ बच्चे जब कोई काम हाथ में लेते हैं तब वे काम को अत्यन्त धीरे २ करते दिखते हैं । ऐसी बातों से हमारे और उनके जीवन में भिन्नता होती है। छोटे बालक अपनी मन पसंद क्रिया करते हैं जैसे कि कपड़े पहिनना, कपड़े उतारना, कमरा साफ करना, नहाना आदि धीरे २ बहुत ही उत्साह से करते हैं इन सब बातों में उनकी धीरज अनहद होती है । अभी उनकी शक्ति विकाश के मार्ग पर है. अतएव उनको बड़ी मुश्किली पड़ती है परन्तु वे उसको धीरज से दूर करते हैं परन्तु हम बालकों को कहते हैं " अरे ! यह तो फिजूल समय खोता है