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क्यों २ शुद्धि का कार्य करता जाता है त्यो २ उसको उसमें से विश्रान्ति मिलती है । जब बच्चा अव्यवस्थित और असंबद्ध कार्य करता है सब उसके स्नायु बल श्रम करना पड़ता है उल्टा बुद्धियुक्त कार्य से उसकी शक्ति निश्चय पूर्वक बढ़ती है और अनेक गुणी हो जाती है। आत्मविजय का उसको सात्विक अभिमान भाता है पहिले उनको जो प्रदेश पार नहीं हो सकता है परन्तु ऐसा प्रतीत होता था अब वे उसके बाहिर जा सकते हैं। तब वे अपने शिक्षक के लिये कि जिसने उन पर अपने व्यक्तित्व का दबाव दिये बिना उनको जो सिखाया है, उसके लिये मान उत्पन्न होता है ।
बच्चे की अन्तर वृति क्या है ? और वह किस दिशा में जाती है उसको हमें देखना है हम नियमन के लिये उसके ऊपर प्रवृति लाद दें उसके बजाय मन पसन्द प्रवृति करते २ बच्चे नियमन प्राप्त कर सकते हैं और यही सच्चा सिद्धान्त है। इसलिये हम बच्चों की प्रवृति के बीच में आते हुए विचार करते हैं और उनकी प्रवृत्ति को मान देते हैं। यहाँ पर एक बनाव पर विचार करते हैं।
रोम के बाग में एक साढा चार वर्ष का हँसमुखा रूपवान बालक था । वह बालक अपनी गाड़ी में छोटे २ कंवड़ भरने में मशगूल था उसके पास उसकी आया बैठी थी उसका यह ख्याल था कि मैं बालक को बहुत सम्हालती हूँ। जब घर जाने का समय श्राया श्राया बालक को धीरे २ कह रही थी "चलो जाने का वक्त हो गया" इसको छोड़ दो और बाबा गाड़ी में बैठा बच्चा अपने काम में इतना अधिक मशगूल था कि उसने उसका यह कहना नहीं सुना और सुनने पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। उसका कार्य जारी ही था जब आया को यह मालूम हुआ कि बच्चा उसका कहना नहीं मानता है और दृढ़ता से अपना काम करता ही जाता है तब वह शीघ्रमेव खड़ी हो गई और उस छोटी गाड़ी को कंकरों से भर दी। बच्चा और कंकर दोनों बाबा गाड़ी में रख दिये। उसके मन में ऐसा था कि जिस चीज की बच्चे को जरूरत थी वह चीज उसने उसको दे दी है।
- परन्तु बच्चा तो जोर जोर से रोने लगा उसके छोटे चहरे पर अन्याय और जुल्म के चिह्न स्पष्ट दिखने लगे। इस बच्चे को कंकड़ से मरी हुई गाड़ी की जरूरत न थी उसको कंकड़ों से काम नहीं था उसको तो कंकड़ गाड़ी में