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भरते समय शरीर की जो कसरत होती थी उसको करने की जरूरत थी। वह शारीरिक विकाश के लिये क्रिया करता था। बच्चे का उद्देश्य शरीर और मन के अन्तर विकास का था उसका उद्देश्य गाड़ी भर कंकर संग्रह करने का नहीं था। उस वक्त उसके इधर उधर बाहिर जगत के आकर्षण निरर्थक थे, अवास्तविक थे। उसको अकेली अपने जीवन की आवश्यक्ता ही मन पसन्द थी। कदापि उसने सारी गाड़ी भर भी दी होती तो उससे भी उसको सन्तोष नहीं होता परन्तु वापिस गाड़ी खाली कर पुन: वह का वही काम करने दिया होता तो जब उसको आत्मतृप्ती हो जाती तब वह रुक जाता।
___ बच्चे को काम करते करते आत्मतृप्ति होती थी इसलिए उसका चहरा गुलाबी और हंसमुख दिखता था। सूर्य प्रकाश, व्यायाम और आध्यात्मिक आनन्द ये तीन प्रकाश किरण जीवन को घढ़ते थे।
इन छोटे बनावों से बालजीवन में कैसे विघ्न मावे हैं उसकी यह एक छोटी मिसाल है। बच्चों को बड़े नहीं समझते हैं वे उनको अपने नाप से ही नापते हैं और तोलते हैं। बच्चा कुछ करने को जाता है, करने की कोशिश करता है तो बड़े प्रेम पूर्वक उसको मदद करने दौड़ते हैं वे यह ख्याल करते हैं कि बचा सिर्फ स्थूल वस्तु ही मांगता है और वे उसको देने की फर्ज समझते हैं। परन्तु अक्सर बच्चा तो अपनी इच्छानुसार स्वयं विकास मांगता है कोई उसको करके दें तो उसकी इच्छा लेने की नहीं होती है वह जो कुछ काम करना सीख गया है वह का वह बार २ करते वह थक जाता है परन्तु जो उससे नहीं हो सकता है उसको बार २ करने का प्रयत्न करता है। दूसरे उसको अच्छी तरह से कपड़े पहिनाते हैं उसको वह पसन्द नहीं करता है परन्तु वह स्वयं जैसे पहिन सकता है, उसी को वह पसन्द करता है बड़े उसको नहलावै धुजावें उसकी बनवित वह खुद नाहना और धोना पसन्द करता है चाहे पूर्ण तौर से उनके माफिक नहा और घो न सके परन्तु वह बड़ा घर का मालिक होने के बजाय एक छोटा घर स्वयं निर्माण करना चाहता है इसका सच्चा और एक का एक ही आनन्द स्वयं विकाश है। अब बचा एक वर्ष का होता है तब तक वह सिर्फ अपना शारीरिक पोषण प्राप्त करने को अपना विकाश ढूंढता है परन्तु इसके बाद वह शरीर और मन दोनों का विकाश इंढ़ता है।
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