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(११) कि उनको पैसा कार्य करना अभी नहीं पाया है। बच्चों को अपना काम स्वयं कर लेना चाहिये। कुदरत ने अपनी प्रवृत्ति करने के लिए शारीरिक साधन उपस्थित किये हैं और कैसे करना उनको सीखने के लिए बुद्धि दी है। इदरती तौरपर ही बच्चों को जो २ काम करने हैं, अपने आप ही कर लेने चाहिये। उन्हें करने के लिये बच्चों की शक्ति बढ़ाना चाहिये। हमारा फर्ज सिर्फ इतना ही है कि उसमें मदद करें। जो माता अपने बच्चे को चम्मच पकरने का सिखाने के बजाय स्वयं चम्मच पकड़ कर बच्चे को खिलाती है और जो माता कुछ नहीं तो खाकर बतादें कि कैसे खाना चाहिये । श्रादि बातों की बच्चों को समझ नहीं दी जाती परन्तु उससे विपरीत लुकमे दिये जाते हैं, वह माता सच्ची माता नहीं है। ऐमी मां अपने बच्चे की स्वाभाविक स्वतंत्रता और मनुष्य की महत्ता का अपमान करती है, ऐसी मां कुदरती अपने गोद में आए हुए एक मनुष्य का पुतला गिनकर कुदरत की अवगणमा करती है। ....... अलबत्ता हम जानते हैं कि बच्चे को खिलाने पिलाने के बनिश्वत उसको हाथ मुंह धोने और कपड़े पहिनना सिखाने का काम बहुत ही कठिन है । तथा उस काम में अत्यन्त धीरज और शान्ति की जरूरत है। परन्तु पहिला काम सरल होने पर भी हलका है कारण कि वह काम नौकर का है जब कि दूसरा काम कठिन होने पर भी ऊंचा है कारण कि वह काम शिक्षा देनेवाले का है। निस्सन्देह पहिला काम मा को सरल मालूम होता है परन्तु बच्चे के लिए तो वह काम भयंकर ही है कारण कि बालविकास में यह काम विनरूप है, उपाधि रूप है, विकासरोधक है। माता पिता की इस तरह की वृति का परिणाम अक्षर अक्षर भयंकर है। __जिस बच्चे के हाथ नीचे बहुत नौकर है वह धीरे २ अपने नौकरों पर अधिक प्राधार रखता है और इतने हद तक आधार रखता चला जाता है कि वह एक तरह से नौकरों का गुलाम ही हो जाता है उसको कुछ काम नहीं करना पड़ता अतएव उसके स्नायु निर्बल हो जाते हैं और आखिरकार वह क्रिया करने की स्वाभाविक शक्ति खो बैठता है । जो मनुष्य अपनी आवश्यक्ता के लिये भी काम नहीं करता है परन्तु दूसरे के श्रम पर ही जीता है उस मनुष्य का मन मंद और जड़ बनता है ऐसे मनुष्य को पीछे से किसी वक्त अपनी प्रथम