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स्थिति का भान होता है और वह उस में से मुक्त होने की इच्छा करता है तो भी उस वक्त उसको मालूम होता है कि अपनी पूर्व स्थिति वापिस प्राप्त करने का कुछ भी बल अब उसमें नहीं है। .
जरूरी मदद बिना स्वाभाविक विकास रूक जाता है पूर्व देश की स्त्रियों को सिर्फ एक ही भूषण रूप घर में बैठना और जनाने में रहना सिखाया जाता है उस पर से साफ जाहिर है कि पुरुष सब काम अकेला ही करना चाहता है वह अपना काम करता है तथा स्त्री का काम भी करता है। इसका परिणाम अनिष्ट होता है । स्त्री का कुदरती बल और प्रवृत्ति करने की शक्ति गुलामी की बेड़ी में जकड़ दी जाती है और वह सड़ जाती हैं। स्त्री का भरण पोषण किया जाता है उसकी तावेदारी उठाई जाती है इतना ही नहीं परन्तु उसको मनुष्यत्व का जो व्यक्तित्व मिला है उसका उपहास कर उसको दीण किया जाता है। मनुष्य के सब इक छीन लिए जाते हैं। समाज में उसके व्यक्तित्व के नाम पर केवल बिन्दी है। जीवन को बचाने के लिये अथवा उसकी रक्षा के लिये जिन जिन शक्तियों की जरूरत है उन सब शक्तिओं को स्त्रियों का गुलाम बना दिया गया है और उनका हास किया गया है। यहां पर एक दृष्टान्त काफी होगा।
माता पिता और एक बच्चा गाड़ी में बैठ कर एक गांव से दूसरे गांव जा रहे हैं बीच में डाकू गाड़ी को खड़ी रखवाते हैं और पिस्तोल सामने रखकर कहते हैं "पैसा अथवा मौत" इस स्थिति में गाड़ी में बैठी व्यक्तिएं भिन २ तौर पर कार्य करती हैं। पुरुष जिसने शस्त्र काम में लाने की शिक्षा प्राप्त की है और वह इसके लिए निर्भय है वह पिस्तोल खिंच कर डाकूओं का सामना करता है। सिर्फ बच्चे को ही हिरने फिरने की छूट है अतएव वह शीघ्रता से दूर भाग जाता है और शौर करता है परन्तु स्त्री जिसके पास कुदरती व कृत्रिम शक्ति नहीं है क्योंकि उसके अवयवों की शिक्षा जनाने में मिली है और उसने बन्दक का तो स्पर्श ही नहीं किया है अतएव वह एकाएक भयभीत होकर रोती है और वह वहां बेभान होकर नीचे गिरती है। इस बेहोश स्त्री के घर में बहुत नौकर जो उसको काम नहीं करने देते इसी वजह से स्त्री की शक्ति क्षीण हो गई है।
. पराधीनता में से ही जो हुक्मी का जन्म होता है। जो दूसरे से सेवा करवाकर खुश होता है उसमें जो हुक्मी आती है। शेठ नौकर से खिदमत लेकर