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________________ > विमल मंत्र ने युद्ध किया उससे अति भारी । हारा धुंधुक संज हुवा पुनि आज्ञाकारी ॥ बर्ताई तह आन उसे माण्डलिक * बनाया । राज्य सभा में पुनः विमल इज्जत से आये । सुनी भीम + ने बात विमल को तभी बुलाया ॥ १७ ॥ झूठे चुगली खोर और जो जलने वाले । संवत् एक सिंहासन से उतर "भीम" ने हृदय लगाये ॥ इस प्रकार से विमल मंत्रि अति कीरति पाई । "जिन मंदिर" भीमदेव ने तभी सभी तत्काल निकाले ॥ १८ ॥ पीछे कुछ दिन बाद धर्म में रुची लगाई ॥ हजार अठासी विक्रम जानो । लगा अठारह क्रोड़ लाख त्रेपन पर मानो । "विमलवसिहि" + की मिती प्रेमयुत हिरदे श्रांनो ॥ १६ ॥ जिसको देखन हेत लांघ £ सागर को आवें । "फार्बस" किया वखान नहीं चितं संशय आनो ॥ * मातहत राजा । देख देख अति हर्ष युक्त हो कीरति गावें ॥ २० ॥ एक समय तीन सो साठ बनाये । उनमें के हैं वर्त्तमान अब "पांच" लंखाये ॥ कुंभ नगर |] के बीच होय शंका जा देखो । मिलें जीर्ण और शीर्ष खण्डहर अब भी देखो ॥ २१ ॥ इस प्रकार से और अनेकों कार्य धर्म के + #A किये अटल हो दत्त चित्त से बड़े मर्म के ॥ कहांतक वर्णन करें कहांतक कीरती गावें । थकती है अब कलम थाह नहिं इसका पावें ॥ २२ ॥ हाय ! देव क्या हुवा किस तरह धीरज धारें । हो गया काया पलट किस तरह जाति सुवारें ॥ + भीमदेव | आबू - देलवाड़े में विमल मंदिर । कुंभारियाज़ी | समुद्र पार करके ।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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