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________________ "विमल" चला तत्काळ सेन्य ले अपनी सारी । जा पहुंचा वह सिन्धु देश रिपु हुवा दुखारी ॥१०॥ सिन्धुपति भी अपनी सारी सेना लाया।.. .. तभी विमल ने उसी ओर निज अश्व बढ़ाया ॥ वणिक पुत्र को देख सिन्धुपति बोला ऐसे। . भीमदेव की सूरत नहीं यहां दिखती कैसे ॥ ११ ॥ क्या पमिनी प्रतिज्ञा लेकर यहां आये हैं। .. या यहां पर कुछ भेंट और पूजा लाये हैं ॥ बोले विमल कुमार बात क्यों करते बढ़कर । .. हो कुछ बल और शौर्य दिखामो रण में लड़कर ॥ १९॥ सिन्धुपती तत्काल हस्ति से * तीर चलाया । विमल युद्ध में कुचल शीघ्र वह बार बचाया ॥ मारा पीछा तीर शत्रु के मुकुट उड़ाये। ... । कूद मश्व से जाय हस्ति पर मुश्क चढाये + ॥ १३ ॥ इसी तरह से चेदि देश पर विजय मिलाई। तथा मालवे पर फिर उसने करी चढाई ॥ मालव पति था भोज धार उसकी रजधानी। मार भगाया उसे नहीं दिल दहशत पानी ॥ १४ ॥ इस . प्रकार से भीमदेव की धाक जमाई। साथ साथ निज बुद्धि शौर्य से कीर्ति कमाई ॥ इसी तरह से कई मर्तबा युद्ध किये थे। संहारे रिपु झुंड पैर पीछे न दिये थे ॥ १५ ॥ आबू पर्वत निकट नगर चन्द्रावति जानो। वहां का धुंधुक राज भोज का मित्र बखानो ॥ भीमदेव देव से रुष्ट होय जब विमल सिधाये । धुंधुक धांधल करी हुकम नहिं शीश चढाये ॥ १६ ॥ * हाथी पर से। बांधलिया। धारापति भोजराज ।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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